Chapter 1
दो ध्रुवीयता का अंत
इस अध्याय में समकालीन विश्व में हुई कुछ महत्वपूर्ण घटनाओ का अध्यन करेंगे जैसे सोवियत संघ का विघटन, एक ध्रुवीय विश्व, मध्य एशिया संकट, अफगानिस्तान, खाड़ी युद्ध, लोकतांत्रिक राजनीति और लोकतंत्रीकरण- CIS, 21वीं सदी में बदलाव , अरब स्प्रिंग।
समकालीन विश्व में बदलावों की शुरुआत
पहला विश्वयुद्ध |
1914 - 1918 |
दूसरा विश्वयुद्ध |
1939 - 1945 |
शीतयुद्ध |
1945 - 1991 |
1. शीतयुद्ध
- शीत युद्ध कोई वास्तविक युद्ध नहीं है बल्कि इसमें
केवल युद्ध की संभावनाएं बनी रहती हैं इसमें संघर्ष एवं तनाव की स्थिति रहती
है युद्ध का भय रहता है हमले की आशंका रहती है परंतु वास्तव में कोई
रक्तरंजित युद्ध नहीं होता द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति के बाद से सोवियत संघ
के विघटन तक अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच तनावपूर्ण स्थिति को शीतयुद्ध की
संज्ञा दी गई
2. दो ध्रुवीय विश्व
- विश्व स्तर पर दुसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियों ने विश्व के अलग-अलग हिस्सों पर अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया।
- यहीं से दो ध्रुवीयता की शुरुआत हुई दुनिया दो गुटों में बांटी जा रही थी बटवारा यूरोप महाद्वीप से शुरू हुआ (बर्लिन की दीवार ) दो खेमे बन गए- पूर्वी खेमा और पश्चिमी खेमा।
1. पूर्वी खेमा - सोवियत संघ (USSR )
2. पश्चिमी खेमा - अमेरिका ( USA )
दो ध्रुवीय विश्व का अंत
1. सोवियत संघ
- रूस में 1917 में एक क्रांति हुई यह क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ थी इस क्रांति के बाद सोवियत संघ (USSR) अस्तित्व में आया।
- सोवियत संघ समतावादी समाज के तहत केन्द्रीयकृत योजना और राज्य के नियंत्रण पर आधारित साम्यवादी दल द्वारा निर्देशित थी।
- इसे सोवियत प्रणाली कहा जाता था ।
- सोवियत संघ 15 गणराज्य को मिलाकर बना था।
रूस
यूक्रेन
जॉर्जिया
बेलारूस
उज़्बेकिस्तान
आर्मेनिया
अज़रबैजान
कजाकिस्तान
किरतिस्थान
माल्डोवा
तुर्कमेनिस्तान
ताजीकिस्तान
लताविया
लिथुनिया
एस्तोनिया
2. सोवियत संघ की विशेषताएं
- सोवियत संघ पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में और समाजवाद के आदर्शो पर आधारित थी।
- सोवियत संघ एक नियोजित अर्थव्यवस्था थी और अमेरिका की अर्थव्यवस्था को चुनौती देती थी।
- सोवियत संघ उन्नत संचार प्रणाली थी।
- सोवियत संघ में विशाल ऊर्जा संसाधन थे।
- सोवियत संघ में उन्नत घरेलु उपभोक्ता उद्योग था ।
- सोवियत संघ में आवागमन की अच्छी सुविधाए यातायात के साधन उपलब्ध थे ।
- कम्युनिस्ट पार्टी का का दबदबा था और राज्य का स्वामित्व था जिससे ,रोजगार, स्वास्थ्य सुविधा जैसे मुलभुत सुविधा राज्य सुनिश्चित करता था।
3. सोवियत प्रणाली में कमियाँ
- सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया।
- लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी का ना होना असहमति अक्सर चुटकुले और कार्टूनों में व्यक्त करना।
- कम्युनिस्ट पार्टी का सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश होना जनता के प्रति कोई जवाब देही नहीं होना।
- 15 गणराज्य की संस्कृति और अन्य मामलों की अनदेखी करना और रूस का हर मामले में प्रभुत्व होना।
- हथियारों की होड़ में अर्थव्यवस्था पर ध्यान न देना अत्यधिक खर्च हथियारों पर करना।
- सोवियत संघ प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया।
- सोवियत संघ का अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा न कर पाना।
- 1779 में सोवियत संघ का अफगानिस्तान में हस्तक्षेप जिससे अर्थव्यवस्था का भारी नुकसान हुआ।
- उपभोक्ता वस्तु की कमी होना तथा खाद्यान्न का आयात साल दर साल बढ़ाना।
4. गोर्बाचेव की नीति
- सोवियत प्रणाली में आ रही समस्या को हल करने के लिए मिखाइल गोर्बाचोव को सोवियत संघ का महासचिव बनाया गया।
- 1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचोव ने कुछ सुधारो की शुरुआत की जिसमे राजनीतिक सुधारो तथा लोकतंत्रीकरण को अपनाया ।
- दो प्रमुख आर्थिक सुधार लागु किये ।
1. पुर्नरचना (पेरेस्त्रोइका)
2. खुलापन (ग्लासनोस्त)
- मिखाइल गोर्बाचोव की निति का अंदरूनी और बहरी दोनों तरफ से विरोध शुरू हुआ।
- 25 दिसम्बर, 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस, यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की।
- 15 नए देशों का उदय CIS (स्वतंन्त्र राज्यों का राष्ट्रकुल)
5. सोवियत संघ के विघटन के कारण
- सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ अंदरुनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा न कर पाना और जनता का राजव्यवस्था को शक की नज़र से देखना।
- अपने संसाधनों का अधिकांश परमाणु हथियार और सैन्य साजो-सामान पर लगाना।
- अपने संसाधन पूर्वी यूरोप के अपने पिछलग्गू देशों के विकास पर खर्च करना।
- कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रह गयी थी।
- सोवियत संघ में गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार ,शासन में ज्यादा खुलापन लाने के प्रति अनिच्छा थी।
- पार्टी' के अधिकारियों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार दिए गए थे जिससे आम जनता नाराज थी।
- गोर्बाचेव के सुधारों की नीतियों का ठीक तरह से लागु न कर पाना।
- राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार विघटन का तात्कालिक कारण था।
6. सोवियत संघ के विघटन के परिणाम
- सोवियत संघ के विघटन के तिन
परिणाम।
पहला
- दुसरी दुनिया का पतन।
- शीतयुद्ध की समाप्ति।
- समाजवादी और पूंजीवादी विचारो की लड़ाई समाप्त
- हथियारों की होड़ की समाप्ति।
दूसरा
- विश्व राजनीति में शक्ति - संबंध का बदलना।
- अमेरिका का एकमात्र महाशक्ति बनना ।
- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्व ।
- विश्व बैंक ,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संस्थाए विभिन्न देशों की ताकतवर सलाहकार बन गई।
तीसरा
- नए देशो का उदय और उनकी स्वतंत्र पहचान।
- यूरोपीय संघ से जुड़ना और नाटो का सदस्य बनाने की चाहत।
- पचिमी देशो और अमेरिका और चीन से संबंध बनाना।
7. एकध्रुवीय विश्व
- 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बचा।
- अब विश्व में कोई भी देश अमेरिका को टक्कर देने वाला नहीं था।
- विश्व में अमेरिकी वर्चस्व स्थापित हुआ अमेरिका का वर्चस्व हमें सभी क्षेत्रों में देखने को मिलता है।
जैसे :-
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक, सैन्य, अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी, व्यापार।
साम्यवादी शासन के बाद शॉक थेरेपी
- शॉक थेरेपी :- शाब्दिक अर्थ है अघात देकर उपचार
करना।
- साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ
से अलग हुए
गणराज्यो के
विकास के लिए निर्देशित एक मॉडल।
- यह मॉडल विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा
निर्देशित था इसमें साम्यवादी व्यवस्था से पूंजीवादी व्यवस्था की और परिवर्तन
था।
- सभी सामूहिक फार्म को निजी फार्म
में बदला गया और उद्योगों को निजी हाथो में बेचा गया।
1. शॉक थेरेपी की विशेषताएं
- मिल्कियत का प्रमुख रूप जो राज्य के नियंत्रण में था उस पर अब निजी स्वामित्व।
- राज्य की संपदा का निजीकरण किया गया।
- राज्य के नियंत्रण के सामूहिक फॉर्म की जगह निजी फॉर्म में बदला गया अब खेती पूंजीवादी पद्धति से शुरू हुई।
- मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना जिससे व्यापर को बढाया जा सके।
- एक दुसरे देश की मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता।
- पश्चिमी देशों के आर्थिक व्यवस्था से जुड़ना और आपसी सहयोग को बढ़ाना।
- पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया।
2. शॉक थेरेपी के परिणाम
- शॉक थेरेपी के खतरनाक परिणाम हुए रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया पूरी अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई।
- सरकार द्वारा समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट हो गई जिससे मध्यम वर्ग हसिये पर आ गया और निम्न वर्ग और गहरी खाई में चला गया।
- 90% उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों द्वारा बिल्कुल कम दामों पर बेच दिया गया इसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा गया।
- औद्योगिक नीति बाजार ताकतों के हाथों में आ गई जिन्होंने सभी उद्योगों को मटियामेट कर दिया।
- रुसी मुद्रा रूबल में गिरावट आई जिससे मुद्रास्फीति बड़ी और लोगों की जमा पूंजी समाप्त हो गई।
- रूस में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ सकल घरेलू उत्पादन गिरा जिससे खाद्यान्न का आयात शुरू हुआ।
- माफिया वर्ग उभर कर आया जिसने अधिकतर आर्थिक गतिविधियों को अपने नियंत्रण में ले लिया।
- आर्थिक गतिविधियों के साथ राजनीतिक प्रभाव भी देखने को मिला जहां बहुत सारे देशों में आंतरिक संकट उत्पन्न हुआ।
- प्रशासन व्यवस्था में बहुत सारी समस्याएं आई जैसे कामचोर सांसद ,राष्ट्रपति को अधिक शक्तियां सत्तावादी राष्ट्रपति शासन।
संघर्ष और तनाव के क्षेत्र
1. पूर्व सोवियत संघ गणराज्य
- यह संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है इस क्षेत्र ने गृह युद्ध और बगावत झेले है ।
- इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी बढ़ी है जिससे तनाव बढ़ा है ।
- रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले जिसे दबाने में मानवाधिकारो का उल्लंघन हुआ।
- पूर्वी यूरोप में शांति से अलग हुए राज्य चेकोस्लोवाकिया जो चेक तथा स्लोवाकिया में बंटा।
2. बाल्कन क्षेत्र :-
- बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया 1990 में गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में बँट गया।
- बोस्निया हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
3. बाल्टिक क्षेत्र :-
- लिथुआनिया ने मार्च 1990 में खुद को आजाद घोषित किया।
- एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ शामिल हुए ।
- 2004 में नाटों की सदस्यता ली ।
4. मध्य एशिया :-
- 2001 तक तजाकिस्तान में 10 वर्षो तक गृहयुद्ध चला।
- अज़रबैजान, अर्मेनिया, यूक्रेन, किरगिझस्तान, जार्जिया में भी गृहयुद्ध जैसा माहोल रहा।
- आपसी विवाद ने इसे युद्ध का क्षेत्र बनाया।
- मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों के प्रतिस्पर्धा का केंद्र है।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत के संबंध
1. बहुध्रुवीय विश्व
- सभी पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, खासकर रूस के साथ सबसे ज्यादा गहरे है।
- भारत और रूस का दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है जिसमे दोनों की कुछ मुद्दों पर साझा सहमती है
जैसे:-
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर शक्तियो के अनेक केंद्र मौजूद हों।
- सुरक्षा की सामूहिक जिम्मेदारी हो किसी देश पर हमला करने पर सामूहिक करवाई।
- क्षेत्रीयताओं को बढ़ावा दिया जाये।
- अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों को बातचीत से हल निकला जाये।
- हर देश की अपनी स्वतंत्र विदेश नीति हो।
- संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं द्वारा फैसले किए जाएँ।
- इन संस्थाओं को मजबूत लोकतांत्रिक और शक्तिसंपन्न बनाया जाये।
2. आपसी साझेदारी
- 2001 के भारत-रूस ने सामरिक समझौते के 80 द्विपक्षीय दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये है।
- रूस ने भारत की अपने अच्छे संबंधो के कारण कश्मीर, ऊर्जा आपूर्ति, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद सूचनाओं, पश्चिम एशिया में पहुंच, चीन के साथ, संबंधों में संतुलन लाने जैसे मुद्दों पर जरुरत के समय मदद की है ।
- भारत रूस के लिए हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार देश है।
- भारत तेल के आयतक देश है और रूस ने तेल के संकट की घड़ी में हमेशा भारत की मदद की है।
- भारत ,रूस के साथ ऊर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश में है और कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ भी कोशिश केर रहा है।
- रूस भारत की परमाण्विक योजना में मददगार रहा है।
- अंतरिक्ष उद्योग में भी जरूरत के समय क्रायोजेनिक रॉकेट देकर मदद की।
सोवियत संघ ने 1979-89 अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया
- सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया। सोवियत संघ की व्यवस्था और भी कमजोर हुई ।
- सोवियत संघ ने 24 दिसंबर 1979 में अपनी सेना को अफगानिस्तान में भेजा
- मुस्लिम देशों ने इसका विरोध किया.
- अफगानिस्तान के लोगों ने इसका विरोध किया.
- संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसका विरोध किया.
- अमेरिका ने इसका विरोध किया.
- इतने विरोध होने के बावजूद भी सोवियत संघ नहीं माना.
- सोवियत संघ ने अफगानिस्तान के विभिन्न शहरों को अपने कब्जे में ले लिया.
Watch Chapter Video