Chapter - 10
विद्रोही और राज
1857 विद्रोह भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण काल माना जाता है जो ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध भारतीयों का पहला संयुक्त प्रयास था इस विद्रोह ने ब्रिटिश प्रशासन की नींव हिला दी। इस विद्रोह की सुरुआत सैनिक विद्रोह से हुई और धीरे-धीरे भारत के कई हिस्सों तक पहुंचा।
विद्रोह की शुरुआत
- 10 मई 1857 की दोपहर को मेरठ छावनी में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया, शुरुआत भारतीय पैदल सैनिकों ने की जल्दी ही इसमें घुड़सवार फौज भी शामिल हो गई। शहर और आसपास के लोग सिपाहियों के साथ जुड़ गए, सिपाहियों ने शस्त्रागार ( हथियार और गोला बारूद ) पर कब्जा कर लिया।
- विद्रोहियो ने अंग्रेजों पर निशाना साधा और उनके बंगलो, साजो सामान को तहस-नहस कर जला दिया, रिकॉर्ड दफ्तर, अदालत, जेल, डाकखाने, सरकारी खजाने जैसी सरकारी इमारतों को लूट कर तबाह कर दिया।
- अंधेरा होते ही सिपाहियों का एक जत्था घोड़ों पर सवार होकर दिल्ली की तरफ चला, यह जत्था 11 मई को तड़के लाल किले पर पहुँच मुगल सम्राट बहादुर शाह जफ़र से इन सिपाहियों की मांग थी कि बादशाह उन्हें अपना आशीर्वाद दें तथा उनके विद्रोह को वैधता मिले बहादुर शाह जफर के पास कोई चारा नहीं था इसलिए उन्होंने सिपाहियों का साथ दिया अब यह विद्रोह मुगल बादशाह के नाम पर चलाया जा सकता था।
विद्रोह का आकर
विद्रोह की तारीख को ध्यान से देखा जाए तो ऐसा पता लगा है कि जैसे-जैसे विद्रोह की खबर एक शहर से दूसरे शहर में पहुंचती गई वैसे-वैसे सिपाही हथियार उठाते गए।
1. सैन्य विद्रोह कैसे शुरू हुआ ?
- सिपाहियों ने विशेष संकेत के साथ अपनी कार्यवाही शुरू की जैसे - कई जगह शाम को तोप का गोला दागा गया कहीं बिगुल बजाकर संकेत दिया गया।
- सबसे पहले उन्होंने शस्त्रागार पर कब्जा किया फिर सरकारी खजाने को लूटा।
- उसके बाद जेल, सरकारी खजाने, टेलीग्राफ दफ्तर, रिकॉर्ड रूम,बंगले तथा सरकारी इमारतों पर हमला किया और सारे रिकॉर्ड जला दिए।
- अंग्रेज तथा अंग्रेजों से संबंधित हर चीज हर शख्स हमले का निशाना था।
- हिंदुओं और मुसलमानों तथा तमाम लोगों को एकजुट करने के लिए हिंदी, उर्दू और फारसी में अपील जारी होने लगी।
- विद्रोह में आम लोग भी शामिल होने लगे जिसके साथ हमलों का दायरा बढ़ने लगा।
- विद्रोहियों ने लखनऊ, कानपुर और बरेली जैसे शहरों में साहूकार और अमीर लोगों को भी निशाना बनाया किसान इन लोगों को उत्पीड़न मानते थे और अंग्रेजों का पिट्ठू भी मानते थे।
- मई, जून के महीनों में अंग्रेजों के पास विद्रोहियों का कोई जवाब नहीं था अंग्रेज अपनी जिंदगी और अपना घर बार बचाने में फंसे हुए थे।
- एक ब्रिटिश अफसर ने लिखा ब्रिटिश शासन ताश के किले की तरह बिखर गया।
2. सूचनाएं और योजनाएं
1. सूचनाएं कैसे दी गयी?
- अलग अलग स्थानों पर विद्रोह का ढर्रा एक समान था इस से एक बात साबित हो जाती है कि विद्रोह नियोजित था विभिन्न छावनियों के सिपाहियों के बीच अच्छा संचार बना हुए था
- जब सातवीं अवध इरेगुलर कैवेलरी ने मई की शुरुवात में ने कारतूस के इस्तेमाल से मना किया तो उन्होंने 48 नेटिव इन्फेंट्री को लिखा कि, हमने अपने धर्म की रक्षा के लिए यह फैसला लिया है और 48 नेटिव इन्फेंट्री के हुक्म का इंतजार कर रहे हैं।
2. योजनाएं कैसे बनाई गई ?
- विद्रोह के दौरान अवध मिलिट्री पुलिस के कैप्टन हियर्से की सुरक्षा का जिम्मा भारतीय सिपाहियों पर था जहां कैप्टन हियर्से तैनात थे वहां की 41 भी नेटिव इन्फेंट्री की तैनाती थी।
- इन्फेंट्री की दलील थी कि क्योंकि वह अपने तमाम गोरे अफसरों को जड़ से खत्म कर चुके हैं इसलिए अवध मिलिट्री का फर्ज बनता है कि वह कैप्टन हियर्से को भी मौत की नींद सुला दे या उसे गिरफ्तार करके 41 मिनट इन्फेंट्री के हवाले कर दे मिलिट्री पुलिस ने दोनों दलीलें खारिज कर दी।
- अब यह तय किया गया कि इस मामले को हल करने के लिए रेजीमेंट के देसी
अफसरों की पंचायत बुलाई जाए।
- इस विद्रोह की शुरुआत के इतिहासकारों में से एक चार्स बोल ने लिखा है कि
यह पंचायत रात को कानपुर सिपाही लाइनों में जुटती थी इसका मतलब है कि सामूहिक
रूप से कुछ फैसले जरूर लिए जा रहे थे क्योंकि सिपाही लाइनों में रहने थे और सभी की जीवनशैली एक जैसी
थी।
- क्योंकि उनमें बहुत सारे एक ही जाति के होते थे इसलिए इस बात का अंदाजा
लगाना मुश्किल नहीं है कि वह इकट्ठा बैठकर भविष्य के बारे में फैसले ले रहे
होंगे यह सिपाही अपने विरोध के कर्ताधर्ता खुद थे।
3. नेता और अनुयाई
- अंग्रेजो लोहा लेने के लिए नेतृत्व और संगठन जरूरी थे इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए विद्रोहियों ने कई बार ऐसे लोगों की शरण ली जो अंग्रेजों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे।
1. दिल्ली में - मुगल बादशाह बहादुर शाह
2. कानपुर में - पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहेब
3. बिहार - आरा के स्थानीय जमीदार कुंवर सिंह
4. अवध - नवाब वाजिद अली शाह.लखनऊ - बिज रिस कद्
- अक्सर विद्रोह का संदेश आम पुरुषों एवं महिलाओं के जरिए तो कुछ स्थानों पर धार्मिक लोगों के जरिए भी फैल रहा था।
- मेरठ में कुछ ऐसी खबर आ रही थी कि वहां हाथी पर सवार एक फकीर को देखा गया था जिससे सिपाही बार-बार मिलने जाते थे।
- लखनऊ में अवध पर कब्जे के बाद बहुत सारे धार्मिक नेता और स्वयंभू पैगंबर प्रचारक ब्रिटिश राज के नेस्तनाबूद करने का अलख जगा रहे थे।
- अन्य स्थानों पर किसान, जमीदार और आदिवासियों को विद्रोह के लिए उकसाते हुए, कई स्थानीय नेता सामने आ रहे थे
- उत्तर प्रदेश में बड़ोत इलाके के गांव वालों को शाहमल ने संगठित किया।
- छोटा नागपुर स्थित सिंहभूम के एक आदिवासी काश्तकार गोनू ने इलाके के कोल आदिवासियों का नेतृत्व संभाला हुआ था।
4. अफवाहें और भविष्यवाणियां
- इस समय तरह तरह की अफवाहों और भविष्यवाणियों के जरिए लोगों को उकसाया जा रहा था।सिपाहियों ने एनफील्ड राइफल के उन कारतूस का विरोध किया जिसे इस्तेमाल करने से पहले उन्हें मुंह से खींचना पड़ता था।
- अंग्रेजों ने सिपाहियों को बहुत समझाया कि ऐसा नहीं है लेकिन यह अफवाह उत्तर भारत के छावनियों में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी।
1. अफवाह के स्रोत
- रएफल इंस्डिट्पोरक्शन डिपो के एक कैप्टन ने अपनी रिपोर्ट लिखा था कि दम दम स्थित शस्त्रागार में काम करने वाले नीची जाति के एक खलासी ने जनवरी 1857 में एक ब्राह्मण सिपाही से पानी पिलाने के लिए कहा था ब्राह्मण सिपाही ने यह कह कर उसे अपने लोटे से पानी पिलाने से मना कर दिया कि नीची जाति के छूने से उसका लोटा अपवित्र हो जाएगा।
- रिपोर्ट के अनुसार इस पर खलासी ने जवाब दिया कि जल्दी ही तुम्हारी जाति भी भ्रष्ट होने वाली है क्योंकि अब तुम्हें गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूस को मुंह से खींचना पड़ेगा।
2. अन्य अफवाह
1. अंग्रेज सरकार ने हिंदू और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने के लिए एक साजिश रची है अंग्रेजों ने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया है।इस अफवाह के बाद शहरों और छावनियों में सिपाहियों और आम लोगों ने आटे को छूने से भी मना कर दिया चारों तरफ यह डर और शक बना हुआ था कि अंग्रेज हिंदुस्तानियों को ईसाई बनाना चाहते हैं अंग्रेजों ने लोगों को यकीन दिलाने का बहुत प्रयास किया लेकिन अंग्रेज नाकाम रहे।
2. एक अफवाह यह भी थी कि प्लासी के जंग के 100 साल बाद देश आजाद हो जाएगा 23 जून 1857 को अंग्रेजी शासन खत्म हो जाएगा.
3. उत्तर भारत के विभिन्न गांवों से चपातिया बांटने की भी रिपोर्ट आ रही थी ऐसा बताया जाता है कि रात में एक आदमी आकर गांव के चौकीदार को एक चपाती तथा पांच और चपाती बनाकर अगले गांव में पहुंचाने का निर्देश दे जाता था चपाती बांटने का मतलब और मकसद उस समय भी स्पष्ट नहीं था और आज भी स्पष्ट नहीं है लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि लोग इसे किसी आने वाली उथल-पुथल का संकेत मान रहे थे।
5. लोग अफवाहों पर विश्वास क्यों कर रहे थे ?
- गवर्जनर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार ने पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचारों और पश्चिमी संस्थानों के जरिए भारतीय समाज को सुधारने के लिए खास तरह की नीतियां लागू की।
- भारतीय समाज के कुछ तबकों की सहायता से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय स्थापित किए गए थे इनमें पश्चिमी विज्ञान और उदार कलाओं को पढ़ाया जाता था।
- अंग्रेजों ने सती प्रथा को खत्म करने और हिंदू विधवा विवाह को वैधता देने के लिए कानून बनाए थे।
- शासकीय दुर्बलता और दत्तकता को अवैध घोषित करने के बहाने से अंग्रेजों ने कई क्षेत्रों के शासकों को हटाकर उनकी रियासतों पर कब्जा कर लिया जैसे ही अंग्रेजों का कब्जा हुआ अंग्रेजों ने अपने ढंग से शासन व्यवस्था चलानी शुरू कर दी। नए कानून लागू कर दिए, भूमि विवादों के निपटारे तथा भू राजस्व वसूली की व्यवस्था लागू कर दी।
- उत्तर भारत के लोगों पर इन सब कार्यवाइयों का गहरा असर हुआ था लोगों को लगता था कि अब तक जिन चीजों की कद्र करते थे जिनको वह पवित्र मानते थे चाहे राजे रजवाड़े हो या धार्मिक रीति रिवाज हो इन सभी को खत्म करके अंग्रेज एक दमनकारी नीति लागू कर रहे हैं।
अवध में विद्रोह
- 1851 में गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने अवध की रियासत के बारे में कहा था कि ये "गिलास फल एक दिन हमारे ही मुंह में आकर गिरेगा"
- पांच साल बाद 1856 में इस रियासत को ब्रिटिश शासन का अंग घोषित कर दिया हुआ अवध रियासत पर कब्जे का सिलसिला लंबा चला।
1. 1801 में अवध में सहायक संधि
- सहायक संधि की शुरुआत 1798 में लॉर्ड वेलेजली द्वारा की गई यह एक ऐसी व्यवस्था थी जिसमे अंग्रेजों के साथ संधि करने वालों को कुछ शर्तें माननी पड़ती थी।
शर्तें
1. अंग्रेज अपने सहयोगी की बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से रक्षा करेंगे।
2. सहयोगी पक्ष के भूक्षेत्र में ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी तैनात रहेगी। सहयोगी पक्ष को इस टुकड़ी के रखरखाव की व्यवस्था करनी होगी।
3. सहयोगी पक्ष ना तो किसी और शासक के साथ संधि कर सकेगा और ना ही अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी युद्ध में शामिल हो सकेगा।
4. नवाब रियासत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अंग्रेजो पर निर्भर हुआ।
5. अब विद्रोही मुखिया, तालुकदार पर भी नवाब का नियंत्रण नहीं रहा।
2. अंग्रेजो अवध में दिलचस्पी क्यों थी ?
- अवध की जमीन
नील और कपास की खेती के लिए अच्छी थी इस इलाके को
उत्तरी भारत के एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है।
- 1850 के दशक के
शुरुआत तक अग्रेज देश के ज्यादातर बड़े हिस्सों को जीत चुके थे मराठा भूमि दोआब,
कर्नाटक, पंजाब और
बंगाल, सब जगह अंग्रेजों की झोली में थे अवध के अधिग्रहण के साथ ही विस्तार की
नीति मुकम्मल हो जाने वाली थी।
3. देह से जान जा चुकी है
- लार्ड डलहोजी द्वारा किए गए अवध में अधिग्रहण से तमाम इलाकों और रियासतों में गहरा असंतोष था सबसे अधिक गुस्सा अवध में देखा गया।
- अवध को उत्तर भारत की शान कहा जाता था अंग्रेजों ने यहां के नवाब वाजिद अली शाह को यह कहकर गद्दी से हटा कर कलकत्ता भेजा कि वह अच्छी तरह से शासन नहीं चला रहे थे।
- अंग्रेजों ने यह भी कहा कि वाजिद अली शाह लोकप्रिय नहीं थे मगर सच यह था कि लोग उन्हें दिल से चाहते थे। जब वह अपने प्यारे लखनऊ से विदा ले रहे थे तो बहुत सारे लोग रोते हुए कानपुर तक उनके पीछे गए अवध के नवाब के निष्कासन से पैदा हुए दुख और अपमान को उस समय बहुत सारे प्रेक्षकों ने दर्ज किया।
- एक ने तो यह लिखा कि "देह से जान जा चुकी थी" , शहर की काया बेजान थी कोई सड़क, कोई बाजार और घर ऐसा नहीं था जहां से जान-ए-आलम से बिछड़ने पर विलाप का शोर ना गूंज रहा हो।
- नवाब को हटाए जाने से दरबार और उसकी संस्कृति भी खत्म हो गई संगीतकार, कवियों ,कारीगरों, वाबर्चीयों,सरकारी कर्मचारियों और बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी चली गई।
4. फिरंगी राज का आना और एक दुनिया का खात्मा
1. तालुकदारों की सत्ता की समाप्ति
- अवध के अधिग्रहण से केवल नवाब की गद्दी नहीं छीनी थी बल्कि इस इलाके के तालुकदारों को भी लाचार कर दिया था।
- अंग्रेजों के आने से पहले तालुकदारों के पास हथियारबंद सिपाही होते थे अपने किले होते थे अगर यह तालुकदार नवाब की संप्रभुता को स्वीकार कर ले तो कुछ राजस्व चुका कर काफी स्वायत्तता प्राप्त होती थी।
- अंग्रेज इन
तालुकदारों की सत्ता को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं थे अधिग्रहण के फौरन
बाद तालुकदारों की सेनाओं को भी बंद कर दिया इनके दुर्ग
ध्वस्त कर दिए गए।
2. एकमुश्त बंदोबस्त और किसानो की स्थति
- ब्रिटिश भू राजस्व अधिकारियों का मानना था कि तालुकदारों को हटाकर वे जमीन असली मालिकों के हाथ में सौंप देंगे इससे किसानों के शोषण में भी कमी आएगी और राजस्व वसूली में भी इजाफा होगा जिसके लिए एकमुश्त बंदोबस्त लागु किया ।
- लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ भू-राजस्व वसूली में बढ़ोतरी हुई लेकिन किसानों के बोझ में कोई कमी नहीं आई, अवध के बहुत सारे इलाकों का मूल्य निर्धारण बहुत बड़ा चढ़ाकर किया गया है कुछ स्थानों पर तो राजस्व मांग में 30 से 70% तक इजाफा हो गया इससे ना तो।
- तालुकदार की सत्ता छीनने का नतीजा यह हुआ कि पूरी सामाजिक व्यवस्था भंग हो गई अंग्रेजों से पहले तालुकदार किसानों का शोषण करते थे लेकिन जरूरत पड़ने पर तालुकदार किसानों को पैसा देकर उनकी सहायता भी करते थे बुरे वक्त में उनकी मदद करते थे ।
- अब अंग्रेजों के राज में किसानों से मनमाना राजस्व वसूला जा रहा है जिसमें किसान बुरी तरह से पिसने लगे हैं अब इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि बुरे वक्त में या फसल खराब हो जाने में अंग्रेजी सरकार के द्वारा कोई रियायत बरती जाएगी या किसी प्रकार की कोई सहायता इनको मिल पाएगी या त्यौहार पर कोई कर्ज या मदद इन्हें मिल पाए जो पहले तालुकदार उसे मिल जाती थी।
- अवध में किसानों और तालुकदारों में ब्रिटिश शासन के प्रति जो गुस्सा था वह 1857 के विद्रोह में देखने को मिला।
- अवध के
तालुकदारों ने 1857 की लड़ाई की बागडोर अपने हाथ में ले ली और यह नवाब की पत्नी बेगम हजरत महल के
खेमे में शामिल हो गए।
3. सिपाहियों के प्रति बदलता नजरिया
- फौज में दशकों से सिपाहियों को कम वेतन और छुट्टी नहीं मिलती थी जिससे उनमें भारी असंतोष था।
- 1857 के जन विद्रोह से पहले के सालों में सिपाहियों ने अपने गोरे अफसरों के साथ रिश्ते काफी बदल चुके थे।
- 1820 के दशक में अंग्रेज अफसर सिपाहियों के साथ दोस्ताना ताल्लुकात रखने पर खासा जोर देते थे वह उनकी मौज मस्ती में शामिल होते थे उनके साथ मल युद्ध करते थे उनके साथ तलवारबाजी करते थे और उनके साथ शिकार पर जाते थे उनमें से बहुत सारे हिंदुस्तानी बोलना भी जानते थे और यहां की रीति रिवाज और संस्कृति से वाकिफ थे।
- 1840 के दशक में यह स्थिति बदलने लगी अंग्रेजों में श्रेष्ठता कि भाव पैदा होने लगा और वे सिपाहियों को कम स्तर का मानने लगे वे उनकी भावनाओं की जरा सी भी फिक्र नहीं करते थे गाली गलौज करते, शारीरिक हिंसा यह सामान्य बात बन गई थी।
- सिपाहियों और अफसरों के बीच फासला जो था वह बढ़ गया था भरोसे की जगह अब संदेह ने ले ली थी उत्तर भारत में सिपाहियों और ग्रामीण जगत के बीच गहरे संबंध थे बंगाल आर्मी के सिपाहियों में से बहुत सारे अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव से भर्ती होकर आए थे।
- इनमें बहुत सारे ब्राह्मण ऊंची जाति के भी थे अवध को बंगाल आर्मी की पौधशाला कहा जाता था सिपाहियों के साथ हो रहा है। दुर्व्यवहार का असर गांव में भी दिखने लगा था अब सिपाही अपने अफसरों की अवज्ञा करने लगे थे उनके खिलाफ हथियार उठाने लगे थे ऐसे में गांव वाले भी उन्हें समर्थन देते थे।
विद्रोही क्या चाहते थे ?
- अंग्रेज विद्रोहियों को एहसान फरामोश और बर्बर लोगों का झुंड मानते थे
- ज्यादातर विद्रोही सिपाही और आम लोग थे, जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे इस प्रकार अपने विचारों का प्रसार करने और लोगों को विद्रोह में शामिल करने के लिए जारी की गई, कुछ घोषणाओं और इश्तहारों के अलावा हमारे पास ऐसी ज्यादा चीजें नहीं है जिनके आधार पर विद्रोहियों के नजरियों को समझ सके।
- इसलिए 1857 के विद्रोह में जो भी हुआ इसके बारे में जानकारी के लिए अंग्रेजों के दस्तावेजों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- इन दस्तावेजों से अंग्रेज अफसरों की सोच का पता चलता है लेकिन विद्रोही क्या चाहते थे यह पता नहीं चलता।
1. एकता की कल्पना
- 1857 के विद्रोह में विद्रोहियों के द्वारा जारी की गई घोषणा में जाति और धर्म का भेदभाव समाप्त करते हुए एक साथ सभी तबकों को आने को कहा जाता था।
- बहुत सारी घोषणाएं मुस्लिम राजकुमार या नवाबों की तरफ से या उनके नाम से जारी की गई थी इसमें हिंदुओं और मुसलमानों की भावनाओं का ख्याल रखा जाता था।
- इस विद्रोह को ऐसे युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा था जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों दोनों का फायदा और नुकसान बराबर था। इश्तहारों में अंग्रेजों से पहले के हिंदू - मुस्लिम अतीत की ओर संकेत किया जाता था।
- अंग्रेज शासन ने दिसंबर 1857 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित बरेली के हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काने के लिए ₹50000 खर्च किए उनकी यह कोशिश नाकामयाब रही।
2. उत्पीड़न के प्रतीकों के खिलाफ
- विद्रोहियों ने ब्रिटिश राज्य से संबंधित हर चीज को पूरी तरह से खारिज किया देसी रियासतों पर कब्जा किए जाने की निंदा की।
- लोग इस बात से भी नाराज थे कि अंग्रेजों ने भू राजस्व व्यवस्था लागू करके छोटे-बड़े भू-स्वामियों को जमीन से बेदखल कर जमीन हड़प ली है विदेशी व्यापार ने दस्तकार और बुनकरों को तबाह कर डाला था।
- फिरंगियों ने भारतीयों की जीवन शैली को नष्ट किया विद्रोही अपनी उसी दुनिया को दोबारा बहाल करना चाहते थे।
- विद्रोही घोषणाओं में इस बात का डर दिखता था कि अंग्रेज हिंदू और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने पर तुले हैं अंग्रेज भारतीयों को ईसाई बनाना चाहते हैं इसी डर के कारण लोग अफवाहों पर भरोसा करने लगे थे.लोगों को प्रेरित किया जा रहा था कि वह इकट्ठे मिलकर अपने रोजगार, धर्म, इज्जत और अस्मिता के लिए लड़े।
- कई दफा विद्रोहियों ने शहर के संभ्रात को जानबूझकर बेइज्जत किया गांव में सूदखोरों के बहीखाते जला दिए और उनके घर तोड़फोड़ डालें इससे पता चलता है कि विद्रोही उत्पीड़न के भी खिलाफ थे।
3 . वैकल्पिक सत्ता की तलाश
- ब्रिटिश शासन ध्वस्त हो जाने के बाद लखनऊ, कानपुर, दिल्ली जैसे स्थानों पर विद्रोहियों ने एक प्रकार की सत्ता और शासन संरचना स्थापित करने का प्रयास किया।
- यह विद्रोही अंग्रेजों से पहले की दुनिया को पुनर्स्थापित करना चाहते थे इन नेताओं ने पुरानी दरबारी संस्कृति का सहारा लिया विभिन्न पदों पर नियुक्तियां की गई भू-राजस्व वसूली और सैनिकों के वेतन का इंतजाम किया गया।
- लूटपाट बंद करने का हुक्म जारी किया गया इसके साथ अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध जारी रखने की योजनाएं भी बनाई गई।
- इन सारे प्रयासों में विद्रोही 18वीं सदी के मुगल जगत से ही प्रेरणा ले रहे थे विद्रोहियों द्वारा स्थापित किए गए शासन संरचना का पहला उद्देश्य युद्ध की जरूरतों को पूरा करना था।
- यह शासन संरचना अधिक दिनों तक अंग्रेजों की मार बर्दाश्त नहीं कर पाई।
1857 विद्रोह का दमन
- अंग्रेजो के द्वारा विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया गया लेकिन यह आसान साबित नहीं हुआ उत्तर भारत को दोबारा जीतने के लिए टुकड़ियों को रवाना करने से पहले अंग्रेजों ने उपद्रव शांत करने के लिए फौजियों की आसानी के लिए कई कानून पारित कर दिए।
- मई, जून 1857 में पारित कानून के जरिए पूरे उत्तर भारत में “ मार्शल लॉ “ लागू कर दिया गया “ मार्शल लॉ “ के तहत फौजी अफसरों को तथा आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिंदुस्तानियों पर मुकदमा चलाने और उनको सजा देने का अधिकार दे दिया जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था।
- “मार्शल लॉ“ लागू होने के बाद सामान्य कानून की प्रक्रिया रद्द कर दी गई अंग्रेजों ने यह स्पष्ट कर दिया कि विद्रोह की केवल एक ही सजा हो सकती है- सजा– ए- मौत
- नए कानूनों के द्वारा तथा ब्रिटेन से मंगाई गई नई टुकड़ियों से अंग्रेज सरकार ने विद्रोह को कुचलने का काम शुरू कर दिया।
- अंग्रेजों ने दोतरफा हमला बोल दिया एक तरफ कलकत्ता से दूसरी तरफ पंजाब से दिल्ली की तरफ हमला हुआ दिल्ली में कब्जे की कोशिश जून 1857 में बड़े पैमाने पर शुरू हुई. लेकिन सितंबर के आखिर में जाकर अंग्रेज दिल्ली को अपने कब्जे में ले पाए।
- दोनों तरफ से हमले हुए दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा विद्रोही दिल्ली को बचाने के लिए आ चुके थे अंग्रेजों को दोबारा सभी गांव जीतने थे लेकिन इस बार उनकी लड़ाई केवल सिपाहियों से नहीं थी बल्कि गांव के आम लोग भी विद्रोहियों के साथ थे।
- अवध में एक अंग्रेज अफसर ने अनुमान लगाया कि कम से कम तीन चौथाई वयस्क पुरुष आबादी विद्रोह में शामिल थी इस इलाके को लंबी लड़ाई के बाद 1858 के मार्च में. अंग्रेज दोबारा अपने नियंत्रण में ले पाए।
- अंग्रेजों ने सैनिक ताकत का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया उत्तर प्रदेश के काश्तकारों तथा बड़े भू-स्वामियों ने मिलकर अंग्रेजों का विरोध किया ऐसे में अंग्रेजों ने इनकी एकता को तोड़ने के लिए जमीदारों को यह लालच दिया कि उन्हें उनकी जागीर लौटा दी जाएंगी और विद्रोह का रास्ता अपनाने वाले जमीदार को जमीन से बेदखल कर दिया गया और जो वफादार थे, उन्हें इनाम दिए गए।
विद्रोह की छवियां
- विद्रोहियों की सोच को समझने के लिए दस्तावेज काफी कम मिले है विद्रोहियों की कुछ घोषणाएं, अधिसूचनाएं, नेताओं के पत्र है लेकिन ज्यादातर इतिहासकार अंग्रेजों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों को ध्यान में रखकर ही विद्रोहियों की कार्यवाही पर चर्चा करते हैं।
- अंग्रेजों के दस्तावेजों में अंग्रेजों की सोच का पता लगता है सरकारी ब्योरो की कोई कमी नहीं है औपनिवेशिक प्रशासक और फौजी अपनी चिट्ठियों, अपनी डायरियों, आत्मकथा और सरकारी इतिहासो में अपने-अपने विवरण दर्ज कर गए हैं असंख्य रिपोर्ट, नोट्स, परिस्थितियों के आकलन एवं विभिन्न रिपोर्टों के जरिए भी हम सरकारी सोच और अंग्रेजों के बदलते रवैया को समझ सकते हैं.
- इनमें बहुत सारे दस्तावेजों को सैनिक विद्रोह, रिकॉर्ड्स पर केंद्रीय खंडों में संकलित किया जा चुका है दस्तावेजों में हमें अफसरों के भीतर मौजूद भय और बेचैनी तथा विद्रोहियों के बारे में उनकी सोच का पता लगता है.
- ब्रिटिश अखबारों में तथा पत्रिकाओं में विद्रोह की घटनाओं को इस प्रकार से छापा जाता था कि वहां के नागरिकों में प्रतिशोध एवं सबक सिखाने की भावना पनपती थी अंग्रेजों और भारतीयों द्वारा तैयार की गई कई तस्वीरें सैनिक विद्रोह का एक महत्वपूर्ण रिकॉर्ड रही है.
1. रक्षकों का अभिनंदन
- विद्रोह के दौरान अंग्रेजों को चुन - चुन कर मारा जा रहा था ऐसे में अंग्रेजों द्वारा बनाई तस्वीरों को देखने पर तरह तरह की भावनाएं और प्रतिक्रियाएं नजर आती हैं. अंग्रेजों को बचाने और विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों का गुणगान किया गया
- उदाहरण – 1859 में टॉमस जॉन्स बार्कर द्वारा बनाया गया चित्र रिलीज़ ऑफ़ लखनऊ
- जब विद्रोहियों की टुकड़ी ने लखनऊ पर घेरा डाल दिया तो ऐसे समय में लखनऊ के कमिश्नर हेनरी लॉरेंस ने ईसाइयों को इकट्ठा किया और सुरक्षित रेजीडेंसी में जाकर पनाह ले ली लेकिन बाद में हेनरी लॉरेंस मारा गया लेकिन कर्नल इंग्लिश के नेतृत्व में रेजीडेंसी सुरक्षित रहा।
- 25 सितंबर को जेम्स औटरम और हेनरी हैवलॉक वहां पहुंचे उन्होंने विद्रोहियों को तितर-बितर कर दिया और ब्रिटिश टुकड़ियों को नई मजबूती थी।
- 20 दिन बाद अंग्रेजों का नया कमांडर कॉलिंग कैंपबेल भारी तादाद में सेना लेकर वहां पहुंचा उसने ब्रिटिश रक्षक सेना को घेरे से छुड़ाया।
2. अंग्रेज औरतें तथा ब्रिटेन की प्रतिष्ठा
1. इन मेमोरियल चित्र
- भारत में औरतों और बच्चों के साथ हुई हिंसा की खबरों को ब्रिटेन के लोग पढ़कर प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग करने लगे।
- अंग्रेज अपनी सरकार से मासूम औरतों की इज्जत बचाने और बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने की मांग करने लगे चित्रकारों ने भी सदमे और दुख की अपनी चित्रात्मक अभिव्यक्तियों के जरिए इन भावनाओं को आकार प्रदान किया जोसेफ नोतल पैटन ने सैनिक विद्रोह के 2 साल बाद ( इन मेमोरियल ) चित्र बनाया।
- इस चित्र
में अंग्रेज औरतें और बच्चे एक घेरे में एक दूसरे से लिपटे दिखाई देते हैं यह
बिल्कुल लाचार और मासूम दिख रहे हैं जैसे कोई भयानक घड़ी की आशंका में है
- वह अपनी
बेइज्जती हिंसा और मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं ( इन मेमोरियल ) में भीषण
हिंसा नहीं दिखती उसकी तरफ सिर्फ एक इशारा है।
2. मिस व्हीलर का चित्र
- कुछ अन्य चित्रों में औरतें अलग तेवर में दिखाई देती हैं इनमें वे विद्रोहियों के हमले से अपना बचाव करती हुई नजर आती हैं इन्हें वीरता की मूर्ति के रूप में दर्शाया गया है।
- इन चित्रों में विद्रोहियों को दानवों के रूप में दर्शाया गया है जहां चार कद्दावर आदमी हाथों में तलवार और बंदूक लिए एक अकेली औरत के ऊपर हमला कर रहे हैं।
- इस चित्र में इज्जत और जिंदगी की रक्षा के लिए औरतों के संघर्ष की आड़ में एक गहरे धार्मिक विचार को प्रस्तुत किया गया है यह ईसाइयत की रक्षा का संघर्ष है इस चित्र में धरती पर पड़ी किताब बाइबल है।
3. प्रतिशोध और सबक
- न्याय की एक रूपात्मक स्त्री छवि दिखी जिसके एक हाथ में तलवार, दूसरे हाथ में ढाल है उसकी मुद्रा आक्रामक है।
- उसके चेहरे पर भयानक गुस्सा और बदले लेने की तड़प दिखाई देती है वह सिपाहियों को अपने पैरों तले कुचल रही है।
- जबकि भारतीय औरतों और बच्चों की भीड़ डर से कांप रही है।
4. दहशत का प्रदर्शन
- प्रतिशोध और सबक सिखाने की चाह इस बात से भी पता लगती है कि किस प्रकार, तथा कितने निर्मम तरीके से विद्रोहियों को मौत के घाट उतारा गया।
- उन्हें तोपों के मुहाने पर बांधकर उड़ा दिया गया या फिर फांसी से लटका दिया गया इन सजाओ की तस्वीरें पत्र-पत्रिकाओं के जरिए दूर-दूर तक पहुंच रही थी।
5. दया के लिए कोई जगह नहीं
- इस समय बदला लेने के लिए शोर मच रहा था अगर ऐसे में कोई नरम सुझाव दे तो उसका मजाक बनना लाजमी है।
- विद्रोहियों के प्रति अंग्रेजों के मन में गुस्सा बहुत अधिक था इस समय गवर्नर जनरल कैनिंग ने ऐलान किया कि नरमी और दया भाव से सिपाहियों की वफादारी हासिल किया जा सकता है।
- उस पर व्यंग करते हुए ब्रिटिश पत्रिका पंच के पन्नों में एक कार्टून प्रकाशित हुआ जिसमें कैनिंग को एक भव्य नेक बुजुर्ग के रूप में दर्शाया गया उसका हाथ एक सिपाही के सिर पर है जो अभी भी नंगी तलवार और कटार लिए हुए हैं दोनों से खून टपक रहा है।