Chapter 1
लेखनकला और शहरी जीवन
मेसोपोटामिया
- मेसोपोटामिया नाम यूनानी भाषा के दो शब्द मेसोस और पोटैमोस से मिलकर बना है।
1. मेसोस ( Mesos ) का अर्थ - मध्य
2. पोटैमोस ( Potamos ) का अर्थ – नदी
- इस प्रकार मेसोपोटामिया का अर्थ दो नदियों के बीच का क्षेत्र हुआ।
- मेसोपोटामिया दजला (Tigris) और फरात (Euphrates) नदियों के बीच की उपजाऊ भूमि थी।
- इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि शहरी जीवन की शुरुआत मेसोपोटामिया में हुई थी।
- मेसोपोटामिया वर्तमान समय में ईराक का हिस्सा है।
मेसोपोटामिया की सभ्यता किस लिए प्रसिद्ध थी
- मेसोपोटामिया का क्षेत्र नदियों के बीच स्थित होने के कारण कृषि और व्यापर के लिए विकसित हुआ।
- मेसोपोटामिया में प्राचीन शहरों का विकाश हुआ जो आगे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र बनकर उभरे।
- यहाँ सभ्यता और विज्ञान का विकास हुई विशाल और समृद्ध साहित्यों की रचना हुई।
- अभिलेखों और लेखन का प्रथम प्रयोग इस सभ्यता में हुआ, गणित और खगोल विद्या यही की देन है।
मेसोपोटामिया की भाषाएँ
- मेसोपोटामिया की सभ्यता में सबसे पहले सुमेरियन (सुमेरी)थी इसे लगभग 3000 ईसा पूर्व से दक्षिणी मेसोपोटामिया (आधुनिक दक्षिणी इराक) में बोला जाता था।
- 2400 BC के आसपास अक्कदी भाषा बोली जाने लगी यह उत्तरी मेसोपोटामिया (आधुनिक उत्तरी इराक और सीरिया के कुछ हिस्सों) में बोली जाती थी।
- 1400 BC के आसपास अरामाइक भाषा बोली जाने लगी।(अरामाइक भाषा , हिब्रू से मिलती जुलती थी)
मेसोपोटामिया की भौगोलिक स्थिति
- यह क्षेत्र वर्तमान समय में ईराक गणराज्य का हिस्सा है ईराक भौगोलिक विविधताओं से भरा देश है।
- इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को सुमेर और अक्कद कहा जाता था बाद में इस भाग में बेबीलोन का प्रभाव बढ़ा तो इसे बेबीलोनिया कहा जाने लगा।
- इस के उत्तरी भाग को असीरियाई कब्जा होने के बाद असीरिया कहा जाने लगा।
- मेसोपोटामिया की सभ्यता में उर , उरुक और मारी जैसे शहर प्रसिद्ध थे।
पूर्वोत्तर भाग -
- यहां हरे भरे मैदान है ,यहां वृक्ष से ढकी पर्वत श्रृंखला है ,यहां स्वच्छ झरने उपलब्ध है।
- यहां जंगली फूल हैं यहां अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा होती है।
- यहां 7000 से 6000 BC के बीच खेती शुरू हो गई।
उत्तरी भाग
- उत्तर में ऊंची भूमि पर ( स्टेपी ) घास के मैदान है।
- यहां पशुपालन आजीविका का अच्छा साधन है।
- यहाँ जानवरों के लिए सर्दियों की वर्षा के बाद चारा ( घास ) उपलब्ध हो जाता है।
पूर्वी भाग -
- दजला और उसकी सहायक नदियाँ ईरान की तरफ जाने के लिए परिवहन का अच्छा साधन है।
दक्षिण का भाग
- दक्षिणी भाग रेगिस्तान है।
- यही पर सबसे पहले लेखन प्रणाली और नगरों का उद्भव हुआ था।
- उपजाऊ भूमि उपलब्ध है।
मेसोपोटामिया की सभ्यता के जानकारी के स्रोत
1. पुरातात्विक खोजें :-
खुदाई स्थल से मिली कलाकृतियाँ, इमारतें, जैसे भौतिक अवशेष जो दैनिक जीवन की जानकारी देते है।
2. क्यूनीफॉर्म टैब्लेट (किलकार पट्टिकाएं) :-
यह मिटटी की पट्टिकाएं जो शासन, अर्थव्यवस्था, धर्म और संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
3. ऐतिहासिक ग्रंथ :-
भाषाओं में लिखे गए विभिन्न प्राचीन ग्रंथ ऐतिहासिक आख्यान, शाही शिलालेख, महाकाव्य साहित्य और धार्मिक ग्रंथ से जैसे गिलगमेश का महाकाव्य और एनुमा एलीश।
4. कला और वास्तुकला :-
मूर्तियों, नक्काशी ,स्मारक संरचनाओं, सामाजिक संरचनाओं का पता चलता है।
5. प्राचीन समय के आभूषण,कब्र , औजार, मुद्रा, मंदिर जैसे स्रोतों से भी जानकारी प्राप्त होती है।
मेसोपोटामिया में जीवन यापन
1. कृषि व्यवस्था
- मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग की भूमि बहुत उपजाऊ थी।
- यहां फरात नदी रेगिस्तान में प्रवेश करने के बाद कई धाराओं में बंटकर बहती थी।
- इन धाराओं में बाढ़ आ जाने के कारण यह धाराएं सिंचाई की नहरों का काम करती थी।
- जरूरत पड़ने पर गेहूं , जो , मटर और मसूर के खेतों में सिंचाई की जाती थी।
2. पशुपालन
- मेसोपोटामिया के लोग भेड़ और बकरियां पालते थे जिनसे मांस , दूध और ऊन प्राप्त होता था।
- यहां स्टेपी घास के मैदानों , पूर्वोत्तरी मैदानों और पहाड़ों के ढालों में यह पशु पाले जाते थे।
- यहां नदियों में मछलियाँ उपलब्ध थी।
- गर्मियों में खजूर के पेड़ खूब फल देते थे।
शहरी जीवन की विशेषता
1. शहरों में बड़ी संख्या में लोग रहते थे जब किसी अर्थव्यवस्था में खाद्य उत्पादन के अलावा अन्य आर्थिक गतिविधियां विकसित होने लगती हैं तब किसी एक स्थान पर जनसंख्या बढ़ने लग जाती है इसके फलस्वरूप कस्बे बसने लगते हैं ऐसी स्थिति में लोगों का कस्बों में इकट्ठे रहना उनके लिए फायदेमंद होता है क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्था में खाद्य उत्पादन के अलावा , व्यापार , उत्पादन और अन्य सेवाओं का भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
2. नगर के लोग आत्मनिर्भर नहीं रहते उन्हें नगर या गांव के अन्य लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं के लिए उन पर निर्भर रहना पड़ता है उनमें आपस में बराबर लेनदेन चलता रहता है।
3. शहरी जीवन में लोगों को सुविधाएं उपलब्ध थी विभिन्न कार्यों से जुड़े लोग आपस में लेनदेन के माध्यम से जुड़े रहते थे शहरी जीवन में लोग अक्सर अन्य लोगों पर निर्भर रहते थे।
4. इस प्रकार श्रम-विभाजन शहरी-जीवन की विशेषता थी जो एक सामाजिक संगठन के तहत होता था क्यूंकि जरूरी चीजें भिन्न-भिन्न जगहों से अति थी जिनका संगठित व्यापार और भंडारण भी जरुरी था
5. ऐसी प्रणाली में कुछ लोग आदेश देते हैं और दूसरे उनका पालन करते हैं। जैसे मुद्रा काटने वालों को केवल पत्थर ही नहीं, उन्हें तराशने के लिए औज़ार और बर्तन भी चाहिए।
शहरों में माल की आवाजाही
1. मेसोपोटामिया के खाद्य संसाधन चाहे कितने भी समृद्ध हो लेकिन यहां खनिज संसाधनों का अभाव था दक्षिण के अधिकांश भागों में औजार, मोहरे और आभूषण बनाने के लिए पत्थरों की काफी कमी थी।
2. इराकी खजूर और पोपलार के पेड़ों की लकड़ी गाड़ियां , पहिए या नाव बनाने के लिए कोई खास अच्छी नहीं थी औजार, पात्र या गहने बनाने के लिए कोई धातु वहां उपलब्ध नहीं थी इसलिए मेसोपोटामिया ही लोग लकड़ी, तांबा, राँगा, चांदी, सोना, सीपी विभिन्न प्रकार के पत्थरों को तुर्की और ईरान अथवा खाड़ी पार देशों से मंगाते होंगे जिसके लिए वे अपना कपड़ा और कृषि के उत्पाद काफी मात्रा में उन्हें निर्यात करते थे।
परिवहन
1. परिवहन का सबसे सस्ता तरीका जलमार्ग था अनाज के बोरे से लदी हुई नाव नदी की धारा में हवा के वेग से चलते हुए जाती थी जिसमें कोई खर्चा नहीं होता था जबकि जानवरों से माल की ढुलाई कराने में उन्हें चारा खिलाना पड़ता था।
2. मेसोपोटामिया की लहरें और प्राकृतिक जल धाराएं , बस्तियों के बीच माल के परिवहन के लिए एक अच्छा साधन थी।
मेसोपोटामिया सभ्यता में लेखन कला
- यहां के लोग लेखन कला जानते थे।
- लेखन के लिए यह लोग मिट्टी की पट्टिका इस्तेमाल करते थे।
- ध्वनि के लिए कीलाक्षर / कीलाकार चिन्ह का प्रयोग किया जाता था।
- अलग-अलग ध्वनि के लिए अलग-अलग चिन्ह होते थे।
- लेखन का इस्तेमाल हिसाब किताब रखने के लिए , शब्दकोश बनाने , भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता प्रदान करने , राजाओं के कार्यों का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
- मेसोपोटामिया के लिपिक को सैकड़ों चिन्ह सीखने पड़ते थे और उसे गीली पट्टी पर उसके सूखने से पहले ही लिखना होता था।
- लेखन कार्य के लिए बड़ी कुशलता की आवश्यकता होती थी।
साक्षरता
- मेसोपोटामिया के बहुत कम लोग पढ़-लिख सकते थे।
- न केवल प्रतीकों या चिह्नों की संख्या सैकड़ों में थी, बल्कि ये कहीं अधिक पेचीदा थे
- अगर राजा स्वयं पढ़ सकता था तो वह यह चाहता था कि प्रशस्तिपूर्ण अभिलेखों में उन तथ्यों का उल्लेख अवश्य किया जाए।
- अधिकतर लिखावट बोलने के तरीके को दर्शाती थी।
लेखन कला का विकास
- मेसोपोटामिया में जो मिट्टी की पट्टिका पाई गई हैं वो लगभग 3200 BC की है।
- इन पट्टिकाओं में बैलों, मछलियों, रोटियों आदि के लगभग 5000 सूचियां मिली है।
- जो वहां के दक्षिणी शहर उरुक के मंदिरों में आने वाली और वहां से बाहर जाने वाली चीजों की होंगी लेखन कार्य संभवत: तभी शुरू हुआ होगा।
- जब समाज को अपने लेन-देन का स्थाई हिसाब रखने की आवश्यकता महसूस हुई होगी क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर होते थे ऐसे में इसका हिसाब रखना काफी जरूरी हो गया था।
- यहां लोग लेखन के लिए गीली मिट्टी की बनी पट्टिका का इस्तेमाल करते थे जिसे बाद में धूप में सुखाया जाता था।
- लगभग 2600 BC के आसपास वर्ण कीलाकार हो चुके थे इस समय भाषा सुमेरियन थी अंत में यहां शब्दकोश भी बनाया गया।
मेसोपोटामिया में लेखन का प्रयोग
- मेसोपोटामिया की विचारधारा के अनुसार सर्वप्रथम राजा ने ही व्यापार और लेखन की व्यवस्था की थी।
- धार्मिक ग्रंथों,मंदिरों और आराधना संबंधी जानकारी को लिखित रूप में संरक्षित किया जाता था।
- सामाजिक न्याय, विवाद-संबंधी मामलों के नियमों और विधियों को लिखित रूप में संरक्षित करने के लिए भी लेखन का प्रयोग किया जाता था।
मेसोपोटामिया के शहर
5000 ई.पू से दक्षिणी मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास हुआ इनमे कई तरह के शहर थे।
1. मंदिर के चारों ओर विकसित हुए शहर।
2. व्यापार के केंद्रों के रूप में विकसित हुए शहर।
3. शाही शहर।
1. मंदिर
i . बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने अपने गाँवों में कुछ चुने हुए स्थानों पर मंदिरों को बनाना या उनका पुनर्निर्माण करना शुरू किया।
ii . मेसोपोटामिया के प्रारंभिक मंदिर साधारण घरों की तरह ही थे क्योंकि मंदिर भी किसी देवता का ही घर होता था मंदिर की बाहरी दीवार कुछ खास अंतराल के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई होती थी यह मंदिरों की विशेषता थी, साधारण घरों की दीवारें ऐसे नहीं होती थी।
iii. देवता पूजा का केंद्र बिंदु होता था , लोग देवी - देवता के लिए अन्न , दही , मछली लाते थे मंदिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के निवास स्थान थे।
जैसे -
उर जो चंद्र देवता था।
- इनाना जो प्रेम व युद्ध की देवी थी।
iv. यह मंदिर ईटों से बनाए जाते थे और यह समय के साथ बड़े होते गए।
2. नयी सामाजिक संरचना
i. ज़मीन में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि कई बार संकटों से घिर जाती थी।
ii. बाढ़ और सूखे जैसे प्राकृतिक विपदाओं की स्थिति में गाँव समय-समय पर पुनः स्थापित किए जाते रहे
iii. कई मानव निर्मित समस्याएँ भी थी जैसे धाराओं के ऊपरी इलाकों और निचले वालो के बिच ज़मीन और पानी के लिए बार-बार झगड़े हुआ करते थे।
iv. जो मुखिया लड़ाई जीतते थे वे अपने साथियों एवं अनुयायियों को लूट का माल बाँटकर खुश कर देते थे
v. समुदाय के कल्याण पर ध्यान के तहत यी-नयी संस्थाएँ और परिपाटियाँ स्थापित हो गईं।
3. राजा और मंदिर के बिच सम्बन्ध
i. युद्ध विजेता मुखियाओं (राजा) ने कीमती भेंटों को देवताओं पर अर्पित करना शुरू कर दिया जिससे कि समुदाय के मंदिरों की सुंदरता बढ़ गई।
ii. राजा ने अपने लोगों को उत्कृष्ट पत्थरों और धातुओं को लाने के लिए भेजा, जो देवता और समुदाय को लाभ पहुँचा सकें
iii. राजा ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे कि वे आवश्यकता पड़ने पर तुरंत अपनी सेना इकट्ठी कर सकें।
iv. युद्धबंदियों ओर स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मंदिर का अथवा प्रत्यक्ष रूप से शासक का काम करना पड़ता था।
v. कृषिकर भले ही न देना पड़े, पर काम करना अनिवार्य था।
vi. एक अनुमान के अनुसार, इन मंदिरों में से एक मंदिर को बनाने के लिए 1500 आदमियों ने ने पाँच साल तक प्रतिदिन 10 घंटे काम किया था।
vii. शासक के हुक्म से आम लोग पत्थर खोदने, धातु खनिज लाने, मिट्टी से इंटें तैयार करने और मंदिर में लगाने, और सुदूर देशों में जाकर मंदिर के लिए उपयुक्त सामान लाने के कामों में जुटे रहते थे।
4. मंदिर निर्माण कला और प्रौद्योगिकी विकास
i. शासक के हुक्म से आम लोग पत्थर खोदने, धातु खनिज लाने, मिट्टी से इंटें तैयार करने और मंदिर में लगाने, जैसे कामो में लगे रहते थे।
ii. शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग, वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया ,बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को संभालने के लिए शहतीर बनाने ,चिकनी मिट्टी के शंकु (कोन) बनाने और पकाने का काम किया जाने लगा।
iii. मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उच्चकोटि की सफलता प्राप्त की गई।
iv. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया, शहरी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत उपयुक्त साबित हुआ और यह था कुम्हार के चाक का निर्माण इससे दर्जनों एक जैसे बर्तन आसानी से बनाए जाने लगा।
शहरी जीवन और सामाजिक व्यवस्था
i. सामाजिक व्यवस्था में वर्ग का प्रादुर्भाव हो चुका था धन -दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे वर्ग में केंद्रित था।
ii. उदाहरण - बहुमूल्य चीजें जैसे – आभूषण, सोने के पात्र, सीपियां, गहने, लकड़ी के वाद्य यंत्र, यह सब काफी मात्रा में उर के राजाओं और रानियों की कब्रों या समाधियों में उनके साथ दफनाई मिली है लेकिन आम आदमी की स्थिति ऐसी नहीं रही।
iii. कानूनी दस्तावेज से पता चला है कि मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार को आदर्श माना जाता था I
iv. पिता परिवार का मुखिया होता था ,एक शादीशुदा बेटा और उसका परिवार अकसर अपने माता-पिता के साथ ही रहा करते थे I
v. विवाह करने की इच्छा के बारे में घोषणा की जाती थी और वधू के माता-पिता उसके विवाह के लिए सहमति देते थे उसके बाद वर पक्ष के लोग वधू को उपहार देते थे।
vi. विवाह की रस्में जब पूरी हो जाती थी तब दोनों पक्षों की ओर से उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता था।
vii. वह एक साथ बैठकर भोजन करते थे ,फिर मंदिर जाकर भेंट चढ़ाते थे।
उरुक नगर की विशेषताए
i. सबसे पुराने मंदिर-नगरों में से एक था।
ii. यहाँ से हमें सशस्त्र वीरों और उनसे हताहत हुए शत्रुओं के चित्र मिलते हैं।
iii. पुरातत्त्वीय सर्वेक्षणों से पता चला है कि 3000 ई.पू. के आसपास जब उरुक नगर का 250 हैक्टेयर भूमि में विस्तार हुआ।
iv. उरुक नगर की रक्षा के लिए उसके चारों ओर काफी पहले ही एक सुदृढ़ प्राचीर बना दी गई थी।
v. उरुक नगर 4200 ई.पू. से 400 ईसवी तक बराबर अपने अस्तित्व में बना रहा, और उस दौरान 2800 ई.पू. के आसपास वह बढ़कर 400 हैक्टेयर में फैल गया।
vi. ऊरुक ने संस्कृति, कला और धर्म के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। यहां पर कई महत्वपूर्ण संस्कृतिक स्थल और मंदिर थे।
vii. यह व्यापार, व्यवसाय,बाजार और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकशित हुआ।
viii. यह उस समय के मोहनजोदड़ो नगर से दो गुना था।
उर नगर की विशेषताए
1. नगर-नियोजन की पद्धति का अभाव
- यह उन नगरों में से एक था जहाँ सबसे पहले 1930 के दशक में खुदाई की गई थी।
- उसमें टेढ़ी-मेढ़ी व सकरी गलियाँ पाई गई जहा गाड़ियाँ नहीं पहुँच सकती थीं।
- अनाज के बोरे और ईंधन के गड्ढे संभवत गधे पर लादकर घर तक लाए जाते थे।
2. जल निकासी
- नालियाँ और मिट्टी की नलिकाएँ उर नगर के घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं वर्षा का पानी आँगनों में बने हुए हौज़ों में ले जाया जाता था।
- सारा कूड़ा-कचरा बाहर गलियों में डाल देते थे, जहाँ वह आने-जाने वाले लोगों के पैरों के नीचे आता रहता था।
- घरों की दहलीज़ों को भी ऊँचा बनाया जाता था ताकि वर्षा के बाद कीचड़ बह कर घरों के भीतर न आ सके।
- कमरों के अंदर रोशनी खिड़कियों से नहीं, बल्कि उन दरवाज़ों से होकर आती थी जो आँगन में खुला करते थे। इससे घरों के परिवारों में गोपनीयता (privacy) भी बनी रहती थी।
3. अंधविश्वास
- उर में पाई गई शकुन-अपशकुन संबंधी बातें पट्टिकाओं पर लिखी मिली हैं
- जैसे- घर की देहली ऊँची उठी हुई हो तो वह धन-दौलत लाती है
- सामने का दरवाज़ा अगर किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता है
- अगर घर का लकड़ी का मुख्य दरवाज़ा बाहर की ओर खुले तो पत्नी अपने पति के लिए यंत्रणा का कारण बनेगी।
- उर में नगरवासियों के लिए एक कब्रिस्तान था, जिसमें शासकों तथा जन-साधारण की समाधियाँ पाई गईं
- कुछ लोग साधारण घरों के फ़र्शो के नीचे भी दफ़नाए हुए पाए गए थे।
शासक और शासन व्यवस्था
- गिल्मेनिश ने एन्मरकर के कुछ समय बाद उरुक नगर पर शासन किया वह एक महान योद्धा था जिसने दूर-दूर तक के क्षेत्रों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था।
- असीरीयाई शासक असुर बनिपल ने बेबीलोनिया से कई मिट्टी की पट्टीकाए मंगवा कर एक पुस्तकालय में स्थापित किया था।
- नेबोपोलास्सर ने 625 BC में बेबिलोनिया को असीरियाई कब्जे से आजाद कराया था काल विभाजन को सिकंदर के उत्तराधिकारी द्वारा अपनाया गया।
- इसके बाद यह रोम और इस्लाम की दुनिया के बाद में यूरोप पहुँच गया।
पशुचारक क्षेत्र में एक व्यापारिक नगर
1. मारी नगर
- 2000 ई.पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला।
- मारी नगर फ़रात नदी की उर्ध्वधारा पर स्थित था जहा खेती की पैदावार कम थी
- मारी राज्य में वैसे तो किसान और पशुचारक दोनों लोग होते थे, लेकिन अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने का काम करता था
- पशुचारक अनाज,धातु के औज़ारों के बदले अपने पशुओं तथा उनके पनीर चमड़ा तथा मांस से चीजें प्राप्त करते थे।
2. खानाबदोश और किसानो का संघर्ष
- किसानों तथा गड़रियों के बीच कई बार झगड़े हो जाते थे क्योंकी गड़रिये अपनी भेड़-बकरियों को किसानो बोए हुए खेतों से गुज़ार कर फसल को नुकसान पहुँचते थे
- बस्तियों में रहने वाले लोग भी इन पशुचारकों का रास्ता रोक देते थे और उन्हें अपने पशुओं को नदी नहर तक नहीं ले जाने देते थे।
- गड़रिये खानाबदोश कई बार किसानों के गाँवों पर हमला बोलकर उनका इकट्ठा किया माल लूट लेते थे।
- यायावर समुदायों के झुंड के झुंड पश्चिमी मरुस्थल से आते रहते थे ये समूह गड़रिये, फसल काटने वाले मज़दूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे और समृद्ध होकर यहीं बस जाते थे।
- उनमें से कुछ ने तो अपना खुद का शासन स्थापित करने की भी शक्ति प्राप्त कर ली थी। ये खानाबदोश लोग अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई और आर्मीनियन जाति के थे।
- मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे इनकी पोशाक वहां के मूल निवासियों से अलग होती थी ,यह मेसोपोटामिया के देवी देवताओं के आदर के साथ – साथ स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन का भी आदर करते थे
3. मारी नगर की विशेषताए
- मारी नगर व्यापार के बल पर समृद्ध हुए शहरी केंद्र बनकर उभरा
- मारी नगर एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल पर स्थित था
- जहाँ से होकर लकड़ी,ताँबा,रागा,तेल,मदिरा का नवो के जरिए फरात नदी से व्यपार होता था
- घिसाई पिसाई के पत्थर, विकर्मा, लकड़ी और शराब तथा तेल के पीपे ले जाने वाले जलपोत मारी में रुका करते थे
- व्यपार दक्षिण और तुर्की , सीरिया और लेबनान तक होता था
- मरी से माल निकलने के लिए लगभग 10 प्रतिशत प्रभार देना पड़ता था
- मारी राज्य सैनिक दृष्टि से उतना सबल नहीं था, परंतु व्यापार जऔर समृद्धि के मामले में यह अद्वितीय था।
जलप्लावन
- बाइबल के अनुसार यह जलप्लावन पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था
- लेकिन परमेश्वर ने जलप्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ नाम के एक मनुष्य को चुना
- उन्होंने एक बहुत विशाल नाव बनाई और उसमें सभी जीव जंतु का एक-एक जोड़ा रख लिया जब जलप्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया , लेकिन नाव में रखे सभी जुड़े सुरक्षित बच गए
- ऐसी ही एक कहानी मेसोपोटामिया के परंपरागत साहित्य में भी मिलती है इस कहानी के मुख्य पात्र को
- जीउशूद्र या उतनापिष्टिम कहा जाता था
यूरोप वासियों के लिए मेसोपोटामिया का महत्व
- यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि बाइबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट में इसका उल्लेख कई संदर्भों में किया गया है
- ओल्ड टेस्टामेंट की बुक ऑफ़ जेनेसिस में शिमार का उल्लेख है जिसका तात्पर्य अर्थात सुमेर ईटों से बने शहरों की भूमि से है
- यूरोप के यात्री और विद्वान मेसोपोटामिया को एक तरह से अपने पूर्वजों की भूमि मानते थे और जब इस क्षेत्र में पुरातत्व खोज की शुरुआत हुई तो ओल्ड टेस्टामेंट के सत्य को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया
काल गणना
- मेसोपोटामिया की दुनिया को सबसे बड़ी देन कालगणना और गणित की विद्वतापूर्ण परंपरा है।
- 1800 BC के आसपास ऐसी कई पट्टिकाएं मिली है जिनमें गुणा और भाग की तालिका, वर्ग तथा वर्गमूल की जानकारी मिलती है।
- पृथ्वी के चारों और चंद्रमा की परिक्रमा के अनुसार
1. 1 वर्ष का 12 महीने में विभाजन
2. 1 महीने का 4 हफ्तों में विभाजन
3. 1 दिन का 24 घंटों में विभाजन
4. 1 घंटे का 60 मिनट में विभाजन
- जो आज भी हमारे जीवन का हिस्सा है।
- यह कालगणना हमें मेसोपोटामिया वासियों से ही मिला है।
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