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Macroeconomics Unit -1 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Notes


राष्ट्रीय आय का लेखांकन


Chapter - 2  


राष्ट्रीय आय का लेखांकन  



समष्टि अर्थशास्त्र (Macroeconomics) 

  • यह आर्थिक सिद्धांत की वह शाखा है जो संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक इकाई के रूप में अध्ययन करता है।
  • प्रो. कीन्स के अनुसार- "राष्ट्रीय तथा विश्वव्यापी आर्थिक समस्याओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत किया जाना चाहिए।" इस प्रकार समष्टि अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था का अध्ययन समग्र रूप से किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए, कुल राष्ट्रीय आय, कुल माँग, कुल पूर्ति कुल बचत, कुल विनियोग, पूर्ण रोजगार इत्यादि।
  • विश्व में 1930 से पहले परंपरावादी अर्थशास्त्रियों की मान्यता थी कि 'अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।'
  • परंतु 1929-33 की विश्वव्यापी महामंदी ने अमेरिका व अन्य विकसित देशों के उत्पादन, आय व रोजगार में आई भारी गिरावट ने इस मान्यता को बदल दिया  
  • ऐसी गंभीर स्थिति ने अर्थशास्त्रियों को व्यष्टि की बजाय समष्टि स्तर पर सोचने को मजबूर कर दिया
  • 1936 में इंग्लैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे० एम० केन्स ने अपनी पुस्तक 'रोजगार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत' प्रतिपादित किया जिसे केन्स का सिद्धांत या (समष्टि सिद्धांत) कहते हैं। 


समष्टि अर्थशास्त्र में बुनियादी अवधारणाएँ 

 अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्र है जिसमे से दो महत्वपूर्ण  है

1. पारिवारिक क्षेत्र

2. उत्पादन क्षेत्र

3. सरकारी क्षेत्र

4. सम्पूर्ण विश्व     


अर्थव्यवस्था में मूल आर्थिक गतिविधियाँ

1. उत्पादन 

  • उत्पादन गतिविधियों में वस्तु और सेवाओं के बनाने को सम्मिलित किया जाता है। जिससे इनकी मूल्यों में वृद्धि होती है

2. उपभोग

  • वस्तु और सेवाओं का उपभोग मनुष्य अपनी जरुरतो और इच्छाओ को पूरा करने के लिए करता है 

3. निवेश ( पूंजी निर्माण )

  • एक वर्ष में पूंजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि पूंजी निर्माण अथवा निवेश कहलाती है।


वस्तुएँ 

अर्थशास्त्र में वस्तुएँ वे हैं जो मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करती हैं और उपयोगिता प्रदान करती हैं।

वस्तुओ का वर्गीकरण


1. मध्यवर्ती वस्तुएँ

2. अंतिम वस्तुएँ  

  • उपभोग वस्तुएँ या उपभोक्ता वस्तुएँ
  • पूंजीगत वस्तुएँ


1. मध्यवर्ती वस्तुएँ 

  • जो वस्तु अभी तक उत्पादन की सीमा रेखा को पार नहीं कर पाए हैं।
  • वस्तु में मूल्य अभी भी जोड़ा जाना बाकी है।
  • वस्तु जो अभी तक अपने अंतिम उपयोग के लिए तैयार नहीं हैं
  • वे वस्तु जो एक फर्म द्वारा दूसरी फर्म से खरीदे जाते हैं।


2. अंतिम वस्तुएँ

ये वे वस्तुएं हैं जो उत्पादन की सीमा रेखा पार कर चुकी हैं और अपने अंतिम उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग के लिए तैयार हैं।


अंतिम उपयोगकर्ता 


I. उत्पादक

अंतिम उत्पादक वस्तुएँ उत्पादकों द्वारा निवेश के लिए उपलब्ध होती है जैसे मशीने ,वाहन और उपकरण


II. उपभोक्ता

अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ उपभोक्ताओं द्वारा अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए खरीदी जाती हैं जिन्हें हम चार भागों में बाट सकते है। 

  • टिकाऊ वस्तुएं :- वे वस्तुएं होती है जिनका उपयोग कई वर्षों तक किया जाता है  जैसे :-  टी.वी , कार 
  • अर्ध-टिकाऊ :- यह वह वस्तुएं होती है जिनका प्रयोग एक वर्ष या उससे कुछ और समय के लिए किया जाता है जैसे :- कपड़े, फर्नीचर
  • गैर टिकाऊ वस्तुएँ :- यह ऐसी वस्तुएं होती है जिनका केवल एक ही बार प्रयोग किया जाता है जैसे :- इंजेक्शन 
  • सेवाएँ :- सेवाएं वे गैर भौतिक वस्तुएं होती है जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती है जैसे :- डॉक्टर, वकील 


उत्पादन के कारक 


अर्थशास्त्र में, किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन में जिन चीजों की आवश्यकता होती है उन्हें उत्पादन के कारक कहते हैं। 

  • भूमि :- वे संसाधन जो प्रकृति से निशुल्क प्राप्त होते है। जैसे :- नदिया , जंगल 
  • श्रम :- जब कोई व्यक्ति शारीरिक या मानसिक तोर पर किसी कार्य में योगदान देता है तो उसे श्रम कहते है।
  • पूंजी :- मानव निर्मित हर वह पदार्थ जिसका प्रयोग उत्पादन के लिए किया जाता है उन्हें पूंजी कहते है जैसे उपकरण, कारखाने 
  • उद्यमिता :- वे लोग जो बाजार के लिए व्यवसाय और उत्पादन प्रक्रिया में लगे रहते है इन्हें मालिक या प्रबंधक भी कहते है। 

उत्पादन कारक एक अर्थव्यवस्था में कारक सेवा का काम करते है जिससे कारक आय प्राप्त होती है   


आय 

वह धन है जो आपको अपने श्रम या उत्पादों के बदले प्राप्त होती है।

1. भूमि से किराया

2. श्रम से वेतन

3. पूंजी  से  ब्याज

4. उद्यमिता से लाभ 


आय के प्रकार 


1. कारक आय (Factor Income)

  • उत्पादन में कारक सेवाएँ देने के बदले उत्पादन के साधनों को जो भुगतान किया जाता है उसे कारक आय कहते हैं। 
  • जैसे लगान, मजदूरी, ब्याज, लाभ कारक आय हैं। 


2. हस्तांतरण आय (Transfer Income)

  • वे भुगतान जो उत्पादन में योगदान दिए बिना प्राप्त होते हैं, हस्तांतरण आय कहलाती हैं। 
  • यह भुगतान एकतरफा भुगतान होते हैं, क्योंकि इन्हें प्राप्त करने वाले, बदले में कोई उत्पादक सेवा या वस्तु नहीं देते हैं।
  • हस्तांतरण आय के उदाहरण हैं - वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृत्ति, बेरोजगारी भत्ता, अकाल-भूकंप-बाढ़ आदि में सहायता।


प्रवाह एवं स्टॉक अवधारणाएँ


1. प्रवाह

  • प्रवाह एक ऐसी मात्रा है जिसे समय अवधि के संदर्भ में मापा जाता है।
  • इसकी व्याख्या, समयावधि, जैसे- घंटे, दिन, सप्ताह, मास, वर्ष आदि के आधार पर की जाती है। 
  • उदाहरण के लिए एक व्यक्ति की आय प्रवाह है चाहे वह दैनिक हो साप्ताहिक या फिर मासिक।


2. स्टॉक 

  • स्टॉक एक ऐसी मात्रा  है जो किसी निश्चित समय बिंदु  पर मापी जाती है।
  • इसकी व्याख्या, समय के किसी बिंदु, जैसे 4 बजे, सोमवार, प्रथम जुलाई आदि के आधार पर की जाती है। 
  • उदाहरणार्थ राष्ट्रीय पूँजी एक स्टॉक या भंडार है जो एक देश के अधिकार में किसी निश्चित तिथि को मशीनों, इमारतों, औजारों, कच्चामाल आदि के स्टॉक के रूप में होता है। 


निवेश 

अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ाने वाली भौतिक पूँजी के स्टॉक में वृद्धि को निवेश या पूँजी निर्माण कहते हैं। निवेश के दो घटक हैं 


1. स्थायी निवेश 

  • स्थिर निवेश से तात्पर्य एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादक द्वारा अचल संपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि से है। 
  • जैसे संयंत्र और मशीनरी 

 

2. मालसूची निवेश

  • एक समय पर, उत्पादक जो स्टॉक रखते हैं उसे मालसूची निवेश कहते है 
  • जैसे  तैयार माल, अर्ध-तैयार माल या कच्चा माल।


सकल निवेश 

अंतिम उत्पाद का वह भाग जो पूँजीगत वस्तुओं के रूप में निर्मित है, अर्थव्यवस्था का सकल निवेश कहलाता है।


मूल्यह्रास

किसी कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट को मूल्यह्रास कहते हैं। 


मूल्यह्रास के कारण 

  1. सामान्य टूट-फूट के कारण स्थिर पूंजीगत वस्तुओं के मूल्य में गिरावट
  2. अपेक्षित अप्रचलन या अप्रत्याशित अप्रचलन


शुद्ध (निवल) निवेश

 सकल निवेश में से मूल्यह्रास घटाने पर शुद्ध निवेश प्राप्त होता है।




आय का चक्रीय प्रभाव 

देश का उत्पादन, आय और व्यय के रूप में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में एक चक्र की भांति घूमते है क्योंकि एक क्षेत्र का व्यय दूसरे क्षेत्र की आय होती है।


आय के चक्रीय प्रवाह के दो मूल सिद्धांत -

  • विनिमय की प्रक्रिया में, विक्रेताओं (उत्पादकों) को उतनी राशि मिलती है जितनी उपभोक्ता (क्रेता) खर्च करते हैं।
  • वस्तुएँ और सेवाएँ एक दिशा में प्रवाहित होती हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए की गई मौद्रिक अदायगियाँ विपरीत दिशा में प्रवाहित होती हैं जिससे चक्रीय प्रवाह बन जाता है।


1.वास्तविक प्रवाह 

उत्पादन के साधनों का परिवार से व्यावसायिक फर्मों की ओर तथा व्यावसायिक फर्मों से उपभोग हेतु वस्तुओं व सेवाओं का परिवार की ओर प्रवाह वास्तविक प्रवाह कहलाता है।


2. मौद्रिक प्रवाह 

व्यावसायिक फर्मों से साधन भुगतान का परिवार की ओर तथा परिवार से उपभोग व्यय के रूप में व्यावसायिक फर्मों की ओर प्रवाह मौद्रिक प्रवाह कहलाता है।







राष्ट्रीय आय 

राष्ट्रीय आय एक लेखा वर्ष की अवधि के दौरान किसी देश के सामान्य निवासियों द्वारा अर्जित कारक आय का कुल योग है।

                                या 

राष्ट्रीय आय एक लेखा वर्ष की अवधि के दौरान किसी देश के उत्पादित सभी अंतिम सेवाओं और वस्तुओं का मौद्रिक मूल्य है।


एक लेखा वर्ष भारत में  :- 1st April to 31st March 


घरेलू सीमा 

  • 'किसी देश की सरकार द्वारा प्रशासित उस भौगोलिक सीमा से है जिसमें व्यक्ति, वस्तु तथा पूँजी का प्रवाह निर्बाध रूप से होता।'
  • देश का एक समस्त भूभाग जिसमे राजनैतिक और समुद्री सीमा भी शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते से सर्वाधिकार प्राप्त क्षेत्र मछली पकड़ने की नौकाएँ, तेल व प्राकृतिक गैस निकालने वाले यान।
  • ऐसे जलयान तथा वायुयान जो देशवासियों द्वारा पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से दो या दो से अधिक देशों के बीच चलाए जाते हैं।
  • विदेशों में स्थित देश के दूतावास।


देश के सामान्य निवासी

एक देश के सामान्य निवासी में उस व्यक्ति या संस्था को शामिल किया जाता है

  • जिनके आर्थिक हित उसी देश में निहित हों जैसे:- उत्पादन, उपभोग और निवेश ।
  • उसके निवास का काल कम-से-कम एक वर्ष या उससे अधिक होना चाहिए।
  • हमारे देश का नागरिक जो अंतरराष्ट्रीय संगठनों या हमारे देश में स्थित विदेशी दूतावासों में काम कर रहा हो।
  • हमारे देश के नागरिक जो विदेश में रह रहे हैं, लेकिन एक वर्ष की अवधि के लिए नहीं और जिनके आर्थिक हित का केंद्र स्वदेश में है।
  • सीमा पर रहने वाले निवासी जो एक देश में काम करने के लिए नियमित रूप से दो देशों के बीच की सीमा पार करते हैं,वे उस देश के निवासी हैं जहां वे हैं, न कि उस देश के जिसमें वे काम कर रहे हैं।
  • अधिकारियों, राजनयिकों और किसी विदेशी देश के सशस्त्र बलों के सदस्यों को उस देश के सामान्य निवासियों के रूप में माना जाता है जहां के वे हैं, न कि उस देश के जहां वे कार्यरत हैं।


किसे देश के सामान्य निवासी में शामिल नहीं है किया जाता

  • वे विदेशी जो यात्रा, छुट्टियाँ, चिकित्सा उपचार, अध्ययन, सम्मेलन आदि के लिए किसी देश में आते हैं।
  • हमारे देश में तैनात अधिकारी, राजनयिक, सशस्त्र बलों के सदस्य और अन्य देशों के राजदूत।
  • हमारे देश में स्थित अंतर्राष्ट्रीय संगठन और इन संगठनों में काम करने वाले विदेशी। 


अंतिम वस्तुए व सेवाओं का मौद्रिक मूल्य


दो तरीकों से मापा जा सकता है

1. कारक लागत (Factor Cost)

कारक वह लागत है जो किसी वस्तु के उत्पादन में योगदान देने के बदले उत्पादन के कारको को मिलती है। इसमें मजदूरी, लगान, ब्याज और लाभ आदि शामिल होते हैं।कारक लागत में अप्रत्यक्ष कर या आर्थिक सहायता शामिल नहीं होती है।


2. बाजार कीमत (Market Price)

जिस कीमत पर एक वस्तु बाजार में खरीदी या बेची जाती है, वह वस्तु की बाजार कीमत कहलाती है। बाजार कीमत में अप्रत्यक्ष कर या आर्थिक सहायता शामिल होती है।


बाजार कीमत =  कारक लागत + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

शुद्ध अप्रत्यक्ष कर =  अप्रत्यक्ष कर  -  आर्थिक सहायता  


1. अप्रत्यक्ष कर

सरकार द्वारा वस्तुओं के उत्पादन व बिक्री पर लगाए गए करों को अप्रत्यक्ष कर कहते हैं। जैसे :- GST


2. आर्थिक सहायता 

यह सरकार द्वारा अनुदान या धन संबंधी सहायता होती है जो उद्यमों को वस्तु विशेष के उत्पादन करने के लिए या निर्यात बढ़ाने के लिए अथवा उपभोग पदार्थों की कीमत वृद्धि रोकने के लिए दी जाती है।


विदेशों से शुद्ध कारक आय (Net Factor Income from Abroad):-

यह देश में आने वाली और देश से बाहर जाने वाली कारक आय का अंतर होती हैं।


विदेशों से शुद्ध कारक आय = विदेशों से आयी कारक आय – विदेशों में गयी कारक आय 


विदेशों से शुद्ध कारक आय के घटक :-


1. कर्मचारियों का शुद्ध पारिश्रमिक 

एक देश के निवासी दूसरे देशों की घरेलू सीमाओं में काम करके वेतन व मजदूरी अर्जित करते हैं। जैसे भारतीय डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक।


2. संपत्ति व उद्यमवृत्ति से शुद्ध आय 

विदेशों में संपत्ति जैसे- दुकानें, फ्लैट, फैक्टरी, विदेशी बांड व शेयर आदि खरीदकर उनसे लगान व व्याज के रूप में आय अर्जित की जाती है। 


3. विदेशों से निवासी कंपनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय

प्रतिधारित आय से अभिप्राय संयुक्त पूँजी कंपनी के 'अवितरित लाभ' से है।


घरेलू आय की गणना 

घरेलू आय की गणना किसी देश के सभी व्यक्तियों और व्यवसायों की कुल कमाई को जोड़कर की जाती है। 

कारक लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद ( NDP at FC ) 


राष्ट्रीय आय की गणना 

राष्ट्रीय आय की गणना विदेश में रहने वाले नागरिकों सहित देश के नागरिकों की कुल कमाई को जोड़कर की जाती है। 


कारक लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at FC) 


राष्ट्रीय आय निकलने  के समुच्चय 



बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP at MC)


घरेलू सीमा में एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के बाजार मूल्य का योग है। यह मापने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी चल रही है।












राष्ट्रीय आय की गणना 

मानव को जीवित रहने व जीवनस्तर ऊँचा करने के लिए वस्तुएँ व सेवाएँ चाहिए। इनका उत्पादन अनिवार्य है। 
अतः उत्पादन आय का सृजन करता है, आय व्यय को जन्म देती है और व्यय, अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में उत्पादन, आय और व्यय के तीन प्रवाह निरंतर चलते रहते हैं

कुल राष्ट्रीय उत्पादन = कुल राष्ट्रीय आय = कुल राष्ट्रीय व्यय

इन्हीं के अनुरूप राष्ट्रीय आय मापने की तीन विधियाँ हैं

1. उत्पादन विधि (मुल्यावृद्धि )   

2. आय विधि    

3. व्यय विधि 


1. मूल्यवृ‌द्धि (उत्पादन) 

मूल्यवृ‌द्धि (उत्पादन) विधि के पग (Steps)

अर्थव्यवस्था में उत्पादन इकाइयों की पहचान करना और उन्हें समान क्रियाओं के आधार पर विभिन्न औ‌द्योगिक क्षेत्रों (जैसे-प्राथमिक, द्वितीय, तृतीय क्षेत्र) में बाँटना।

प्रत्येक उत्पादन इकाई द्वारा सकल मूल्यवृद्धि के बाजार मूल्यों  (GVAMP) का जोड़ और सभी उत्पादन इकाई द्वारा सकल मूल्यवृद्धि का जोड़ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के बराबर होता है 

जैसे :- GDPMP = ΣGVAMP


👉देश की 'घरेलू आय’ ( NDPFC ) ज्ञात करने के लिए GDPMP में से मूल्यह्रास और शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाया जाता है 

जैसे :- NDPFC = GDPMP (-) मूल्यह्रास  (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

👉'राष्ट्रीय आय’ ( NNPFC )  ज्ञात करने के लिए विदेश से प्राप्त शुद्ध कारक आय (NIFA) को जोड़ दिया जाता है 

जैसे :- NNPFC  = NDPFC + NIFA



मूल्यवृ‌द्धि निकालने का सूत्र :-

👉सकल मूल्यवृद्धि बाजार कीमत पर (GVAMP)

👉सकल उत्पादन का मूल्य बाजार कीमत पर (GVOMP) - मध्यवर्ती उपभोग ( IC )

मूल्यवृ‌द्धि निकालने का सूत्र (Formula)


सावधानियाँ (Precautions):

1. निम्न मदों को शामिल किया जाता है:

  • स्वोपभोग हेतु या मुफ्त वितरण हेतु उत्पादित पदार्थ व सेवाओं का आरोपित मूल्यशामिल किया जाता है।
  • स्वकाबिज मकान का अरोपित किराया शामिल किया जाता है।
  • सरकारी उद्यमों, निजी उद्यमों और गृहस्थ उद्यमों द्वारा अचल परिसंपित्तयों के स्वलेखा उत्पादन का मूल्य शामिल किया जाता है।


2. निम्न मदों को शामिल नहीं किया जाता है

  • पुरानी वस्तुओं (Second hand goods) का क्रय-विक्रय शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह चालू उत्पादन का भाग नहीं होता।
  • कंपनी द्वारा बांडों का विक्रय और आर्थिक सहायता आदि को शामिल नहीं किया जाता है।
  • तस्करी, ब्लैक मार्केटिंग, जुआ आदि गैर-कानूनी क्रियाओं से प्राप्त आय शामिल नहीं की जाती है।


2. आय विधि

आय विधि के पग (Steps)

  • कारक आगतों (जैसे भूमि, श्रम, पूँजी आदि) का प्रयोग करने वाली उत्पादन इकाइयों (प्राथमिक, द्वितीय, तृतीय क्षेत्र ) की पहचान करना।
  • कारक भुगतानों का वर्गीकरण करना जैसे - कर्मचारियों का पारिश्रमिक, मिश्रित आय, प्रचालन अधिशेष में या लगान मजदूरी, व्याज, लाभ में वर्गीकरण करना ।
  • कारक भुगतानों (आय) की राशि ज्ञात करना।
  • घरेलू सीमा में कारक भुगतानों (सृजित कारक आय) को जोड़कर घरेलू आय ज्ञात करना।
  • शुद्ध विदेशी कारक आय ज्ञात करना और उसे घरेलू आय में जोड़कर राष्ट्रीय आय निकालना।


आय विधि के सूत्र ( Formula)


सावधानियाँ (Precautions)

उत्पादन (या मूल्यवृद्धि) विधि द्वारा घरेलू साधन आय के आकलन में निम्न सावधानियाँ बरती जाती हैं -

  • केवल उत्पादक सेवाएँ प्रदान करने के बदले प्राप्त साधन आय शामिल की जाती है।
  • पुरानी वस्तुओं के विक्रय से प्राप्त राशि को शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि वे पहले ही उस वर्ष में शामिल की जा चुकी हैं जिस वर्ष उनका उत्पादन हुआ था, परंतु इन सौदों में संलिप्त दलालों की दलाली शामिल की जाती है
  • स्वकाबिज मकान का आरोपित किराया व स्वोपभोग हेतु किए गए उत्पादन का आरोपित मूल्य शामिल होता है।
  • तस्करी, काला बाजार, चोरी जैसी गैर-कानूनी क्रियाओं से प्राप्त आय बाहर रखी जाती है।
  • कर्मचारियों द्वारा अदा किए गए प्रत्यक्ष कर (direct tax) और कंपनी द्वारा दिए गए लाभ कर (profit tax) शामिल होते हैं, परंतु संपत्ति कर (wealth tax) और उपहार कर (gift tax) शामिल नहीं किए जाते, क्योंकि ये भूतकाल की बचतों और संपत्ति से अदा किए गए समझे जाते हैं।


व्यय विधि
 
व्यय विधि के पग (Steps)

  • अंतिम उपभोग व्यय और अंतिम निवेश व्यय करने वाली आर्थिक इकाइयों की पहचान करना ।
  • जैसे-गृहस्थ (उपभोग) क्षेत्र, उत्पादक (फर्म) क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र की इकाइयाँ।
  • अंतिम व्यय का वर्गीकरण करना । 

जैसे :- 

1. निजी अंतिम उपभोग व्यय
2. सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
3. सकल स्थायी पूँजी निर्माण
4. स्टॉक में परिवर्तन
5. शुद्ध निर्यात।

  • GDP के घटकों पर किए गए अंतिम व्यय की मात्रा ज्ञात करना और उन्हें जोड़‌कर बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP at MP) निकालना।
  • GDP at MP में मूल्यह्रास व शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाकर साधन लागत पर घरेलू उत्पाद (NDP at FC) अर्थात् घरेलू आय ज्ञात करना।
  • शुद्ध विदेशी साधन आय ज्ञात करना और उसे घरेलू आय में जोड़‌कर राष्ट्रीय आय निकालना।

व्यय विधि सूत्र (Formula)

सावधानियाँ (Precautions)

  • दोहरी गणना से बचने के लिए समस्त मध्यवर्ती पदार्थ व सेवाओं पर व्यय की राष्ट्रीय आय से बाहर रखना चाहिए।
  • सरकार द्वारा सब प्रकार के अंतरण भुगतानों (जैसे-बजीफा, बेरोजगारी भत्ता, बुढ़ापे में पेंशन आदि) पर व्यय शामिल नहीं किया जाना चाहिए। इसी प्रकार विदेशों से उपहार शामिल नहीं करने चाहिए।
  • पुराने पदार्थों के क्रय पर किया गया व्यय शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वे संपत्ति के स्वामित्व को प्रकट करने वाले मात्र कागजी दावे हैं।
  • पुराने या नए शेयरों व बांडों के क्रय पर किया गया व्यय शामिल नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह केवल वित्तीय संपत्ति का स्थांतरण है। यह चालू वर्ष के उत्पादन पर व्यय नहीं है।
  • स्वयं द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं के प्रयोग पर आरोपित व्यय शामिल करना चाहिए।



वास्तविक व मौद्रिक सकल घरेलू उत्पाद (Real and Nominal GDP )

1. मौद्रिक GDP
जब GDP का मूल्यांकन प्रचलित बाजार कीमतों के आधार पर किया जाता है तो उसे चालू कीमतों पर GDP या मौद्रिक GDP कहते हैं ।

👉मूल्य P × Q (मात्रा) [मूल्य P आधार वर्ष का लेते है]


2. वास्तविक GDP
जब GDP का मूल्यांकन आधार वर्ष (Base Year) की कीमतों पर किया जाता है तो उसे स्थिर कीमतों पर (at constant prices) GDP या वास्तविक (Real) GDP कहते हैं।

👉मूल्य P × Q (मात्रा) [मूल्य P मौजूदा वर्ष का लेते है]


मौद्रिक GDP का वास्तविक GDP में रूपांतरण

मौद्रिक GDP में वृद्धि का यह अर्थ नहीं है कि पदार्थ व सेवाओं के उत्पादन की मात्रा में भी जरूर वृद्धि हुई है, यह कीमतों में वृद्धि के कारण भी हो सकती है

कीमतों में वृद्धि के प्रभाव को दूर करने के लिए और उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन जानने के लिए मौद्रिक GDP को वास्तविक GDP में अपस्फायक (Deflator) की सहायता से बदला जाता है।



GDP,  आर्थिक कल्याण और सीमाये 

  • कल्याण का अर्थ है सुखी व बेहतर अनुभव करना आर्थिक कल्याण, सकल कल्याण का वह भाग है जिसे मुद्रा में मापा जा सकता है
  • वास्तविक GDP में वृद्धि का अर्थ है भौतिक उत्पादन में वृद्धि जिसके फलस्वरूप उपभोग के लिए अधिक पदार्थ व सेवाएँ उपलब्ध होती हैं और जीवन स्तर उन्नत होता है, इसलिए GDP में वृद्धि को अच्छा और कमी को खराब माना जाता था


यद्यपि वास्तविक GDP आर्थिक कल्याण का एक अच्छा सूचक है, परंतु निम्न सीमाओं के कारण पर्याप्त सूचक नहीं है।

1. आय का वितरण 
  • मात्र GDP में वृद्धि आर्थिक कल्याण में वृद्धि प्रकट नहीं कर सकती यदि इसके वितरण से अमीर अधिक अमीर और गरीब अधिक गरीब हो गए हैं। यह संभव है कि GDP बढ़ने पर भी आय के वितरण से असमानताएँ बढ़ गई हों। फलस्वरूप आर्थिक कल्याण उतना नहीं बड़े जितना GDP बढ़ा है। 

2. सकल घरेलू उत्पाद की संरचना
  • यदि GDP में वृद्धि, युद्ध सामग्री (टैंक, बम, अस्त्र-शस्त्र आदि) के उत्पादन में वृद्धि के कारण है या पूँजीगत वस्तुओं (जैसे-मशीनरी, उपस्कर आदि) के उत्पादन में वृद्धि के कारण है तो इससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं होगी। अतः GDP में वृद्धि होने पर भी लोगों का आर्थिक कल्याण नीचा रह सकता है।

3. गैर-मौद्रिक लेन-देन  
  • GDP में आर्थिक कल्याण बढ़ाने वाली कई वस्तुएँ व सेवाएँ को विशेष रूप से गैर-बाजार सौदों को शामिल नहीं किया जाता है। जैसे-गृहिणी की सेवाएँ, कुछ घरेलू काम मालिक द्वारा स्वयं कर लेना। इन का मौद्रिक रूप में मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, क्योंकि इनका बाजार में क्रय - विक्रय नहीं होता। फलस्वरूप आर्थिक कल्याण का अल्पानुमान हो जाता है।

4. बाह्य प्रभाव

  • इससे अभिप्राय व्यक्ति या फर्म द्वारा की गई क्रियाओं से है, जिनका बुरा या अच्छा प्रभाव दूसरों पर पड़ता है, पर इसके दोषी दंडित नहीं होते। 
  • उदाहरणार्थ धुओं उगलते कल कारखानों द्वारा शुद्ध जलवायु का दूषित होना इन हानिकारक प्रभावों का GDP मापन में हिसाब नहीं किया जाता
  • इसके विपरीत व्यक्तियों द्वारा लगाए गए सुंदर बगीचे से दूसरे लोगों के कल्याण में वृद्धि होती है। लेकिन आर्थिक कल्याण का अल्पानुमान नहीं  हो सकता है।



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